लघुकथा

ईर्ष्या का दामन

कुम्हार ने मिट्टी से चिलम बनाई और फिर तोड़ दी, न जाने क्यों उसे रास नहीं आई! मिट्टी से ही फिर उसने सुराही बनाई और अपनी कला को निरखता ही रह गया!
मिट्टी भी बहुत खुश थी. कुम्हार ने आश्चर्य से खुश होने का कारण पूछा.
“पहले तुमने मुझे चिलम बनाया. चिलम के रूप में मैं स्वयं भी जलती और इंसान को भी जलाती. पर जब तुमने मुझे सुराही बना दिया तो मेरे जीवन में बहुत ही शानदार परिवर्तन आया. अब मैं भी शीतल रहूंगी और इंसान को भी शीतल रखूंगी”. मिट्टी ने जवाब दिया.
“मुझे भी ईर्ष्या का दामन छोड़ देना चाहिए, ईर्ष्या पहले मुझे ही जलाएगी!” ईर्ष्या के शिकार कुम्हार ने निश्चय किया.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244