कविता

चांद

मैंने तुमसे
चांद कब मांगा था
लेकिन
इसका यह मतलब तो नहीं
कि तुम मुझे
सितारों की रोशनी से भी
महरूम कर दो
मैं तो
तुम्हारे प्यार की रोशनी में ही
पूरा जीवन गुज़ार देती
लेकिन
जब वो रोशनी ही ना रही
तो जीवन भी कहां रहा
और जब
जीवन ही ना रहा
तो
चांद प्यारा लगने लगा
क्योंकि
चांद का
सपनों से नाता है
हक़ीक़त से नहीं
और जब
हक़ीक़त बेमानी हो जाए
उस पर से
विश्वास हट जाए
तो
सपने
अपने हो जाते हैं
प्यारे लगते हैं
इसलिए
अब मुझे चांद चाहिए
बोलो
मुझे चांद लाकर कब दोगे ?
— नमिता राकेश