पर्यावरण

नीम नदी उद्गम का पुनर्जीवन : समाज व सरकार के समन्वय की अनूठी मिसाल

उद्गम खोज यात्रा
5 दिसम्बर, 2019 को जब मैं अपनी टीम के साथ गंगा की प्रमुख सहायक पूर्वी काली नदी का अध्ययन कर रहा था तो कासगंज में जानकारी मिली कि एक अन्य नदी जिसका नाम नीम है, वह भी इसमें मिलती है। इसके बाद हमने नीम नदी की उल्टी यात्रा अर्थात कासगंज से हापुड़ तक की यात्रा प्रारम्भ की। इसमें नीम नदी की जानकारियां व अवशेष जुटाने प्रारम्भ किए लेकिन नदी के उद्गम को लेकर कोई सटीक जानकारी नहीं मिल पा रही थी या यूं कहें कि नदी उद्गम को लेकर बहुत भ्रांतियां थीं। कुछ लोग बताते थे कि यह नदी मेरठ जनपद के परीक्षितगढ़ कस्बे से प्रारम्भ होती है जबकि कुछ जानकारियां इसका प्रारम्भ हापुड़ जनपद से ही बताते थे।
इसके बाद हमनें ब्रिटिश गजेटियर, सिंचाई विभाग के दस्तावेज व स्थानीय प्रशासन के सिजरे का सहारा लेकर नदी उद्गम की हापुड़ जनपद में प्रमाणिकता को स्पष्टता के साथ समाज के सम्मुख प्रस्तुत किया। सभी दस्तावेजों में नीम नदी का जिक्र व उसकी जानकारियां मौजूद थीं, लेकिन सिंचाई विभाग के दस्तावेजों में नीम का नाला दर्शाया गया था। इसमें हमनें सैटेलाइट मैपिंग व जीपीएस आदि तकनीक का भी सहारा लिया। नीम नदी का जिक्र पौराणिक किस्से-कहानियों में भी मिलता है। जनश्रुतियों के अनुसार नदी का उद्गम मेरठ जनपद के परीक्षितगढ़ कस्बे से होता हुआ बताया जाता है, जबकि वर्तमान परिस्थिति में सरकारी दस्तावेज सही सिद्ध करते हैं क्योंकि जनश्रुतियां मेरठ जनपद के परीक्षितगढ़ कस्बे से निकलने वाली विलुप्त हो चुकी कोशिकी नदी के संबंध में जानकारी देती हैं जोकि कभी नीम नदी में ही आकर मिल जाती थी। उदगम की प्रमाणिकता का कार्य करीब एक माह तक चला क्योंकि हम सही तथ्य पर पहुंचना चाहते थे। जैसे ही यह तय हो गया कि हां नदी का उद्गम दत्याना गांव से ही था तो हमनें उस स्थान को भी चिन्हित कर लिया जहां पर उद्गम था, लेकिन उस स्थान पर उस समय किसानों द्वारा कृषि कार्य किया जा रहा था।
नदी उद्गम स्थल के निकट से एक रजवाहा बहता है जोकि नदी को दो हिस्सों में बांट देता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि रजवाहा मानव निर्मित है जोकि सिंचाई विभाग द्वारा किसानों के खेत तक नहर का पानी पहुंचाने के लिए बनाया गया है। रजवाहे का तल आज भी नदी तल से ऊंचा है। जाहिर है कि रजवाहा नदी के उद्गम के बीच से ही बनाया गया होगा। रजवाहे के दाहिने ओर नदी की करीब 80 बीघा जमीन है। रजवाहे के बाईं ओर एक विशाल तालाब है, जोकि कभी नदी के जल ग्रहण क्षेत्र का ही हिस्सा रहा है। यहां बरसात में आज भी पानी भर जाता है जबकि ग्रामीणों के अनुसार आज से करीब तीन दशक पूर्व तक अत्यधिक जल भराव के कारण यहां खेती करना संभव नहीं था और नदी में पानी भी पूरे वर्ष बहता रहता था। जैसे-जैसे भूजल स्तर नीचे खिसकता गया तथा औसत वर्षा भी प्रतिवर्ष कम मात्रा में होने लगी तो धीरे-धीरे नदी ने बहना बंद कर दिया।

उद्गम पुनर्जीवन की प्रक्रिया
जब हम पूरी तरह से निश्चिंत हो गए कि नदी का उद्गम दत्याना गांव में ही है तो हापुड़ की तत्कालीन जिलाधिकारी श्रीमति अदिति सिंह से निवेदन किया कि वे इस नदी भूमि का चिन्हांकन करा दें। इसके लिए श्रीमति अतिदि सिंह ने तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी श्री उदय सिंह को हमारे साथ लगा दिया। श्री उदय सिंह ने एक टीम बनाई और जमीन की नापजोख का कार्य प्रारम्भ हो गया। करीब 80 बीघा जमीन चिन्हित की गई। इसके बाद अब बड़ी चुनौती उन किसानों से उस नदी की जमीन मुक्त कराने की थी।
नदी भूमि को कब्जामुक्त कराने हेतु कब्जाधारी किसानों के साथ एक बैठक की गई और उनको इस नदी का महत्व व गौरव बताया गया। दत्याना के निवासियों तक नीम नदी का गौरव पहंुचाने के लिए गांव के नाम एक अपील करता हुआ पत्र लिखा गया। करीब 6 माह की मानसिक रूप से थका देने वाली मेहनत के पश्चात् सभी किसान नदी उद्गम भूमि से अपना कब्जा छोड़ने के लिए तैयार हो गए और धीरे-धीरे सभी किसानों ने नदी भूमि से अपना कब्जा छोड़ दिया। इस दौरान हापुड़ के नए जिलाधिकारी के रूप में श्री अनुज झा कार्यभार संभाल चुके थे, लेकिन अच्छी बात यह थी कि मुख्य विकास अधिकारी श्री उदय सिंह ही थे, जोकि इस पूरी प्रक्रिया का हिस्सा थे। किसानों द्वारा जमीन छोड़ने के बाद अब चुनौती वहां नदी उद्गम पर झील निर्माण की हमारे सामने थी। नदी उद्गम के पूरे विषय को नए जिलाधिकारी के संज्ञान में लाया गया। हमनें एक ओर जहां नदी उद्गम को पुनर्जीवित करने का कार्य प्रारम्भ किया वहीं हापुड़ जनपद में बहने वाली नदी की कुल लम्बाई करीब 14.2 किलोमीटर की यात्रा भी की और उसका एक नक्शा तैयार किया। सम्पूर्ण नीम नदी की का नक्शा बनाने के लिए हमनें नमामी गंगे भारत सरकार का सहयोग लिया। नमामी गंगे की एक तकनीकि टीम भी यहां आई और उन्होंने एक नक्शा भी उसका तैयार किया। इस दौरान नदी पुनर्जीवन का अपना प्रारूप हमनें समाज व प्रशासन के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए श्रमदान व प्रशासन के सहयोग से करने का निर्णय लिया।
इस दौरान मेरठ के नए मण्डायुक्त श्री सुरेन्द्र सिंह बन चुके थे जोकि स्वयं भी नदी प्रेमी अधिकारी हैं। 7 जून, 2021 को नदी उद्गम पर भूमि पूजन करके समाज व सरकार के सहयोग से नदी उद्गम को पुनर्जीवित करने का कार्य प्रारम्भ किया गया। इस कार्य में जहां प्रशासन से तत्कालीन मण्डलायुक्त मेरठ सुरेन्द्र सिंह, जिलाधिकारी हापुड़ श्री अनुज झा व मुख्य विकास अधिकारी हापुड़ उदय सिंह अपने मातहतों के साथ शामिल हुए वहीं समाज से किसान, छात्र, सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि व शूटर दादी श्रीमति प्रकाशी तोमर भी आईं। सामाजिक कार्यकर्ता कर्मवीर सिंह ने इस अवसर पर दस हजार रूपयों का योगदान दिया जिससे कि कुछ दिन मशीन से भी कार्य कराया गया। कुछ कार्य सी0एस0आर0 के तहत भी हुआ कराया गया। समाज के सहयोग व श्रमदान का यह कार्य लगातार लगभग 6 माह तक चला। इस दौरान अनेक स्कूलों के बच्चे व सामाजिक कार्यकर्ता भी यहां श्रमदान के लिए आते रहे। नदी पुनर्जीवन की आहट से बहुत से समान विचारधारा वाले लोकभारती जैसे अनेक संगठन भी इस कार्य में जुटने लगे। नदी किनारे के गांवों में रोजाना जन-जागरूकता कार्यक्रम किए जाने लगे। सैंकड़ों लोग नदी के साथ जुड़ते चले गए।
हापुड़ जनपद से आगे बुलंदशहर में तत्कालीन जिलाधिकारी रविन्द्र कुमार ने करीब 40 किलोमीटर नदी धारा को चिन्हित कराकर उस पर भी कार्य प्रारम्भ कराया था। यहां से कुछ-कुछ कार्य आगे बढ़ता रहा तथा इसी बीच बरसात, कोरोना व गांव पंचायत चुनाव की चुनौती भी आई। क्योंकि कार्य बड़ा था तो उसके लिए अर्थ की आवश्यकता महसूस हो रही थी। ऐसे में श्री सुरेन्द्र सिंह के माध्यम से एक प्रस्ताव लघु सिंचाई विभाग, हापुड़ ने शासन को भिजवाया। इस दौरान हापुड़ जनपद में जिलाधिकारी श्रीमति मेघा रूपम बन चुकी थीं और मुख्य विकास अधिकारी श्री उदय सिंह के स्थान पर श्रीमति प्रेरणा सिंह बन गई थीें। शासन स्तर से पैसा स्वीकृत होने में करीब एक वर्ष का समय लगा। जब शासन से पैसा मिला तो लघु सिंचाई विभाग द्वारा अपनी निविदा प्रक्रिया के तहत यहां झील निर्माण का कार्य को अन्तिम रूप दिया गया। लघु सिंचाई विभाग व सिंचाई विभाग के साथ लगातार हमारा समन्वय बना रहा। इस झील के निर्माण का कार्यमई, 2023 के प्रथम सप्ताह में जाकर पूर्ण हुआ। इस दौरान पुनः हापुड़ में नई जिलाधिकारी के रूप में श्रीमति प्रेरणा शर्मा ने कार्यभार संभाल लिया था, जबकि मण्डलायुक्त मेरठ श्री सुरेन्द्र सिंह का स्थानान्तरण दिल्ली हो गया था।

नदी परिचय
यह बसराती नदी है जोकि दत्याना गांव के निचले हिस्से में मौजूद जंगल से होकर बहती रही है। यह नाम के जैसी ही गुणी नदी है। यह हापुड़ जनपद के दत्याना गांव से निकलकर बुलंदशहर व अलीगढ़ जनपदांे से होते हुए कासगंज में श्याम बाबा के मन्दिर के निकट करीब 180.2 किलोमीटर की दूरी तय करके गंगा की प्रमुख सहायक पूर्वी काली नदी में समाहित हो जाती है। नीम नदी हापुड़ जनपद में मात्र 14.2 किलोमीटर ही बहती है जबकि इसका करीब 166 किलोमीटर का बहाव क्षेत्र बुलंदशहर, अलीगढ़ व कासगंज जनपदों में है। नदी का सर्वाधिक बहाव बुलंदशहर जनपद में करीब 94 किलोमीटर है जबकि बाकि 72 किलोमीटर अलीगढ़ जनपद में। नदी के कुल बहाव क्षेत्र के निकट करीब 200 गांव बसे हुए हैं, जोकि किसी न किसी प्रकार से नदी से प्रभावित होते रहे हैं।
नीम नदी का नाम नीम कैसे पड़ा? इसका सीधा व प्रमाणिक जवाब किसी के पास नहीं है लेकिन गांव के बुजुर्ग इसका कारण बताते हैं कि नदी किनारे नीम के पेड़ बहुतायत में थे जिस कारण से ही नदी का पानी औषधीय गुणों वाला था। नीम नदी एक विशेष प्रकार की विशुद्ध गांवों की नदी है। जितने भी गांव नदी किनारे स्थित हैं उनमें से यह नदी तालाबों से यह जुड़ी हुई है। हापुड़ जनपद के मुरादपुर व सैना गांवों में यह नदी तालाब के एक छोर पर जाकर गिरती है तथा दूसरे छोर से पुनः प्रारम्भ हो जाती है जबकि दत्याना व खुराना जैसे गांवों में तालाबों से सटकर बहती रही है। यही इसकी विशेषता है। बरसात के दिनों में गांवों में होने वाला जल भराव अधिक समय तक नहीं रह पाता था क्योंकि नीम नदी उसे अपने साथ बहाकर ले जाती थी। यूं तो प्रत्येक बरसाती नदी का गांव व तालाबों से निकट का संबंध होता है लेकिन नीम नदी का गांवों व तालाबों से बहुत गहरा नाता है।

नदी उत्सव
जब नदी उद्गम पर झील निर्माण का कार्य पूर्ण हो गया तो 18 मई, 2023 को नीम नदी उद्गम किनारे ही ‘नीम नदी उत्सव’ मनाया गया, जिसमें आस-पास के गांवों के हजारों किसान, सामाजिक संगठन, बच्चे व महिलाएं शामिल हुईं। नीम नदी उत्सव में उत्तर प्रदेश के जल शक्ति मंत्री श्री स्वतंत्र देव सिंह व जल शक्ति राज्य मंत्री श्री दिनेश खटीक व जिलाधिकारी श्रीमति प्रेरणा शर्मा, मुख्य विकास अधिकारी श्रीमति प्रेरणा सिंह, शोभित विश्वविधालय के कुलाधिपति श्री कुंवर शेखर विजेन्द्र, जिला पंचायत अध्यक्ष, गढ़-मुक्तेश्वर क्षेत्र के विधायक, लघु सिंचाई विभाग के एस0ई0 श्री आलोक सिन्हा व संबंधित विभागों के पदाधिकारी भी शामिल हुईं। इस दौरान नदी उद्गम पर गंगा जल प्रवाहित किया गया।

आगे की योजना
नीम नदी उद्गम पुनर्जीवन के कार्य का करीब 80 प्रतिशत कार्य पूर्ण होने के बाद जहां भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने इस विषय को अपने कार्यक्रम मन की बात के 102 वें भाग में नीम नदी उद्गम पुनर्जीवन के कार्य से पूरे देश का परिचय कराकर जहां हमारा हौंसला बढ़ाया है वहीं हमें आगे के कार्य को और अधिक मेहनत, लगन व सतर्कता के साथ करने का संदेश भी दे दिया है। ऐसे में हम अधिक अनुशासन के साथ कार्य को आगे बढ़ाएंगे। भारतीय नदी परिषद् के माध्यम से नीम नदी के सम्पूर्ण पुनर्जीवन हेतु रमन नदी पुनर्जीवन मॉडल को लागू किया जा रहा है। इस मॉडल के माध्यम से नदी किनारे स्थापित समाज को नदी के कार्यों के साथ जोड़ा जा रहा है जोकि इस कार्य को स्थायित्व प्रदान करेगा। नदी किनारे का समाज अपनी नदी को निर्मल व अविरल बनाए रखे, इस उद्देश्य से वर्तमान में नदी उद्गम से आगे नदी बहाव के किनारे के गांवों में नदी पुनर्जीवन समितियां बनाई जा रही हैं। इन समितियों के माध्यम से ‘नीम नदी परिषद्’ के गठन किया जाएगा। नदी पुनर्जीवन के इस सम्पूर्ण कार्य में जी0आई0जेड़0, जर्मनी की एक संस्था भारतीय नदी परिषद् व लघु सिंचाई विभाग के साथ मिलकर सम्पूर्ण सहयोग कर रही है। नीम नदी परिषद् को ही अपनी नदी के सभी अधिकार होंगे। यह परिषद ही नदी के सभी निर्णय लेगी। हम नदी किनारे बसे समाज को ही नदी का सच्चा व अच्छा हितैषी बनाने के लिए प्रयासरत हैं। हापुड़, बुलंदशहर व अलीगढ़ के विभिन्न सामाजिक संगठन, सामाजिक कार्यकर्ता व समाज में विभिन्न व्यवसायों से जुड़े लोग भी नीम नदी पुनर्जीवन के यज्ञ में अपने कर्म ही आहूति देने के लिए जुड़ रहे हैं। हम आशा कर रहे हैं कि आने वाले कुछ वर्षों में हम नीम नदी को पुनर्जीवित करके देश के समक्ष एक मॉडल प्रस्तुत करने में सफल होंगे और माननीय प्रधानमंत्री जी के विश्वास पर खरे उतर पाएंगे।

— रमन कान्त
रिवरमैन ऑफ इण्डिया
संस्थापक – भारतीय नदी परिषद्