बारिश
इस बारिश भीग लूँ ज़रा ,मन मस्तिष्क को सींच लूँ ज़रा ,
जो दफन हो चुकी अभिलाषाएं फिर से वो अंकुरित हो जाएं ।
नस नस मे हो वही संचार ,जिस से खुद किया किनार ,
धुल जाए सारा द्वेष विकार ,आ भीग लूँ फिर एक बार ।
कब निकलूँ मैं विषाद से जैसे यह प्रतीक्षा युगों से
यह जो है दुःखों का सागर होना है इससे मुझे पार .
पहलेभी सावन बरसता था,अब भी सावन बरसता है ,
अबये मुझसे कुछ कहता है जैसे जीवन राग सुनाता है ।
पहले जब मैं आती थी ,तु मुझमें घुल जाती थी ,
मैं तुझमें खो जाती थी ,तु मुझमे रम जाती थी ।
तु इठलाती, बलखाती ,अल्हड़ आवारा हो जाती थी.
मेरे स्पर्श से मुख मंडल तेरा खिल जाता था,
मन मयूर हो जाता था मैं पुलकित हो जाती थी ,
कुछ देर और रुक जाती थी .
अब क्यों ये खामोश मन ,आते ही मेरे किवाड़ किये बंद.
अब तुझे मैं क्या नहीं पसंद ,तभी सोंचु क्यों हूए मेरे वेग मन्द ।
पहले थी मेरी बूंदें बे असर,ना खांसी ना होता ज्वर .
याद है वो हिदायत पहली बारिश मे नहाना है
घामौरियों से छूटकारा पाना है .
अब बूंदें कतराती हैं ,खबर देकर मुकर जाती है.
ऐ बारिश तु क्यू है खफा ,अबकी बार जम कर आ
खडी हूँ घर के द्वार , अपनी बाहें पसार .
खोल दिये सारे खिड़की , किवाड़ , है सिर्फ तेरा इंतजार .
आ जा ऐ बरखा बहार ,वो अल्हड़ – सा प्यार
सींच दुंगी खुद को, धो डालूँगी सारे विषाद
वो बचपन की बारिश से पहला – सा प्यार .
— सविता सिंह मीरा