कविता

अहिंसा की हिंसा

यह विडंबना नहीं तो क्या है?
कि अहिंसा की बातें तो हर कोई करता है
चहुंओर अहिंसा का शोर सुनाई देता है
पर जीवन में उसका आधा भी
धरातल पर उतरता नहीं दिखता है।
उल्टे हिंसा की नई तस्वीरें
रोज ही देखने को मिल जाती हैं।
क्योंकि हम कुछ करने से ज्यादा
बक बक करने में माहिर हैं
सड़क पर कोई मर रहा हो तो
हम वीडियो बनाने में व्यस्त रहते हैं,
सोशल मीडिया पर बड़ी बड़ी नसीहतें देते हैं,
शासन सत्ता पर उंगलियां उठाने में
विद्यावाचस्पति मुफ्त में हासिल किए हैं।
हिंसा न करके भी हम आप हिंसा फैला रहे हैं
किसी की मौत के गुनहगार भी हम आप बन रहे हैं।
जब हमारी मानवीय संवेदनाएं मर रही हैं
तो हिंसा अहिंसा का आखिर मतलब क्या है?
अच्छा होगा पहले खुद अहिंसक बनिए,
सिर्फ औरों को उपदेश देकर
बड़े बुद्धिमान समझदार मत बनिए।
पहले अपने मन के भीतर के छुपी
मानसिक हिंसा का दमन करिए,
फिर अहिंसा का झंडा बुलंद करिए
अहिंसा के लंबरदार भी तब ही बनिए
अहिंसा का अभियान भी तब ही चलाइए।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921