90 बहारें ज़िनदगी की देख लीं हैं मैं ने
91वाँ जनम दिन आज आ गिया है मेरा
ख़ुश बुबत हूं एक साल और बढ़ गिया है मेरी ज़िनदगी में
मगर भूल कैसे जाउूं एक साल कम हो गैया है बाक़ी ज़िनदगी में
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ख़ुश भी बुहत हूं मैं अपनी इस ज़िनदगी से
कमी किसी चीज़ की नही है मुझे ज़िनदगी में
ख़तर वैसे तो होती नही इछाएं आदमी की
मगर परमातमा ने बुहत कुछ दिया है मुझे ज़िनदगी में
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सजदे परमातमा के मैं करता नही हर एक दिन
मगर शुकर बजा लाता हूं उसका ज़रूरत होती है जिस दिन
बुहत बडा तो नही मगर छोटा भी नही परीवार मेरा
बुहत ख़याल रखता है जो मेरा मेरी इस ज़िनदगी में
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पड नाना बन चुका हूं मैं तीन बार इस ज़िनदगी में
पड दादा बनने का अब इनतज़ार है मुझे इस ज़िनदगी में
सनगि साथी बुहत सारे जा चुके हैं मुझे छोड कर
मगर हम सफ़र मेरा अभी तक है साथ मेरे इस ज़िनदगी में
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90 बहारें मेरी ज़िनदगी की गुज़री हैं बुहत ही ख़ुशी से–मदन–
सूरत ख़ज़ाँ की तो मैं ने देखी ही नही है इस ज़िनदगी में
अब और कितनी बहारें सजें गी ज़िनदगी की मैहफ़िल में
इनतज़ार इस बात का अब है मुझे मेरी बाक़ी ज़िनदगी में