युवकों की तुम आश हो, वृद्धों की पतवार।
मानवता के सारथी, दुख के तारणहार।।
जय जय ज्ञान विवेकानंदा।
दीन दुखी के हो तुम संता।।1
सन अट्ठारह त्रैसठ आया।
भुवनेश्वरी ने लाला जाया।2
खुशियां छाई बजी बधाई।
बंगाली बहने सब आईं।।3
घर आंगन में चौक पुराये।
सखियां मंगल गीत सुनायें।।4
विश्वनाथ मन में हरषाये।
नामकरणहित ज्योतिषआये।।5
पंडित नाम नरेंद्र बताये।
बुद्धि विवेक सभी हरषाये।।6
शाला में जब पढ़ने जाते।
तेज बुद्धि से धाक जमाते।।7
रामकृष्ण ने तुमको पाया।
जीवन अपना धन्य बनाया।।8
खुशियों के जब आंसू आये।।
गुरु ने तुमको गले लगाये।9
कलकत्ता की काली माई।
गुरु देव ने ईष्ट बनाई।।10
शिष्य विवेका भये अनंदा
स्वामी छोड़ें माया फंदा।।11
ज्ञान धरम की बात बताई।
कूड़ा करकट दूर हटाई।।12
धरम सनातन को अपनाया।
गीता का उपदेश सुनाया।।13
धरम परायण ज्ञानी संता।
कुरीति का तो कीना अंता।14
ग्यारह सितम तराणू आई।
विश्व धरम सम्मेलन जाई।।15
शहर शिकागो धरमा मेला।
संत समागम लगा झमेला।।16
सब धर्मों के मुखिया आये।
स्वामी जी भी शंख बजाये।।17
सब ने अपनी बात सुनाई।
निज धरमों की करी बड़ाई।।18
अंत समय थोड़ा ठहराया।
भगवा साधू मंच बुलाया।।19
हाथ जोड़ कर माथा नामा।
सब श्रोतन को किया प्रणामा।20
भाई बहनों ! कह संबोधन।
गरजी ताली दे उद्बोधन।।21
सब धर्मों का सार सुनाया।
गीता को आधार बताया।।22
शून्यविषय का कर उल्लेखा।
बीजक गीता वेद विशेषा।24
योग करम का पाठ पढ़ाया।
मानवता का मान बढ़ाया।25
सब नदियां सागर मिल जाती।
सभी धरम मह ज्योति मिलाती।26
पश्चिम देशों में अभिनंदन।
करते भारत मां का वंदन।।27
विश्व गुरु की छवी बनाई।
अध्यातम की अलख जलाई।।28
निवेदिता को शिष्य बनाया।
भगिनी दर्जा उन्हें दिलाया।।29
छोड़ देश को भारत आई।
सेवा करके श्रद्धा पाई।।30
रामकृष्ण गुरु मिशन बनाया।
मानव सेवा धरम चलाया।।31
बाल वृद्ध सब सुनते वाणी।
मोहित होते मुनी विज्ञानी।।32
प्रबद्ध भारत औ उदबोधन।
दोनो पत्र वेदन शोधन।33
उच्च चरित्रा ब्रह्मा चारी।
सह विज्ञाना धरम विचारी।।34
कन्याकुमारि शिला सुहाया।
जहां गुरु ने ध्यान लगाया।।35
करी साधना आश्रम पावन।
मूरत स्वामी लगे सुहावन।।36
हे जग स्वामी अंतरयामी।
जन कल्याणी मुनि विज्ञानी।37
देश देश में मिशन चलाया।
दया धरम की सेवा माया।।38
बारह जनवरी युवा मनाते।
जन्म दिवस स्वामी का गाते।।39
उन्निस सौ दो चार जुलाई।
डूबा सूरज लई बिदाई।।40
वेद पुराण वेदांग सब, किया विवेक बखान।
दीन दुखी सेवा करी, स्वामी बने महान।।
— डॉ दशरथ मसानिया