रम्भा की मी टू
रम्भा की मी टू
“हेलो, मुख्यमंत्री साहेब नमस्कार ! मैं रम्भा बोल रही हूँ, खतरा जनपद पंचायत अध्यक्ष. पहचाना साहेब.” ”
“हाँ-हाँ रम्भा जी, हम आपको कैसे भूल सकते हैं ? आप हमारी पार्टी से लगातार दो बार खतरा जनपद पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीत चुकी हैं.”
“थैंक गॉड, पहचाना तो सही.”
“ना पहचानने का तो सवाल ही नहीं उठता रम्भा जी. बताइए कैसे याद किया आज आपने मुझे ?”
“बस ऐसे ही साहेब को याद दिलाने के लिए फोन लगा लिया कि इस बार विधानसभा के लिए मैं अपना टिकट पक्का समझूँ न ?”
“क्या… ? विधानसभा टिकट… ? सॉरी रम्भा जी, आपके क्षेत्र से तो वर्तमान विधायक जो केबिनेट मंत्री भी हैं, वही चुनाव लड़ेंगे, उनका टिकट काटना बहुत रिस्की है.”
“और मुझे टिकट नहीं देना क्या रिस्की नहीं है ? आपने पिछली बार मुझे प्रोमिस किया था कि दुबारा अध्यक्ष चुने जाने पर आपको विधानसभा भेजेंगे.”
“जहाँ तक मेरा ख्याल है मैंने आपसे यही प्रोमिस किया था कि दुबारा अध्यक्ष चुने जाने पर आपको विधानसभा में भेजने पर विचार किया जाएगा.”
“हाँ हाँ, बात तो वही है न. अब अपनी बात से मुकर क्यों रहे हैं आप ?”
“देखिए हम अपनी बात से मुकर नहीं रहे हैं.”
“टिकट भी नहीं दे रहे हैं साहेब और कह रहे हैं कि हम अपनी बात से मुकर नहीं रहे हैं. आप मुझे यूँ अंडर स्टीमेट नहीं कर सकते. लगता है आपको हमारी ताकत का अंदाजा नहीं है. अभी प्रेस कॉन्फ्रेस में ‘मी टू’ का राग अलाप दूँ, तो आपका मुख्यमंत्री का पद तो क्या, कहीं भी मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगे ?”
“मुझे आपकी ताकत का पूरा अंदाजा था, इसीलिए मैंने आपकी पूरी बातचीत अपनी मोबाइल पर रिकॉर्ड कर ली है. अब आप करिए जितना करना है प्रेस कॉन्फ्रेस. देखते हैं कौन मुँह दिखाने के लायक रहता है और किसे मुँह छिपाना पड़ता है.”
“अरे साहेब जी, लगता है आप तो बुरा मान गए. मैं तो मजाक कर रही थी.”
“पर मैं बिलकुल भी मजाक नहीं कर रहा था.” और उन्होंने फोन काट दिया.
-डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़