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भुलक्कड़ मामा

// भुलक्कड़ मामा //

हर बार की तरह इस बार भी अमर अपने माता-पिता और छोटी बहन के साथ होली का त्यौहार मनाने अपने गाँव राजपुर पहुँचा। उसे गाँव की होली बहुत अच्छी लगती थी।
अमर के पिताजी शहर में नौकरी करते थे, इसलिए वे लोग शहर में रहते थे, पर लगभग सभी तीज-त्यौहार वे अपने गाँव में आकर मनाते थे। यहाँ अमर के दादा-दादी, चाचा-चाची तथा उनके बच्चे रहते थे। त्यौहार पर सभी से आपस में मिलजुल कर अच्छा लगता था।
इस बार राजपुर पहुँचने पर अमर को अपने घर में एक नया आदमी दिखाई दिया। पूछने पर दादा जी ने बताया कि यह उनका नया नौकर है, जो दिन में खेतों में काम करता है और रात को घर की चौकीदारी करता है। इस दुनिया में उसका कोई नहीं है। धीरे-धीरे अमर भी उसे हिलमिल गया।
वह बहुत ही अच्छा आदमी था। हमेशा हँसी-मजाक करते रहता था। मशीन की तरह हर काम पलक झपकते ही कर लेता था। सभी बच्चे उसे भोेला मामा कहते थे। उसमें बुराई थी तो सिर्फ एक बात की, वह एक नम्बर का भुलक्कड़ था।
बात होली के एक दिन पहले की है। अगले दिन होलिका दहन था। होलिका को खूब बड़ा करने के लिए कुछ शरारती लड़के गाँव के लोगों की लकड़ी के तख्ते, चारपाई और यहाँ तक कि खाली पड़ी छोटी-छोटी झोपड़ियों की छत को उठा कर ले जाते और होलिका में डाल देते थे।
इन लड़कोें के डर से गाँव के लोग रात भर जाग कर सामानों की देखभाल करते। घर से कोई सामान न ले जाए, इसलिए रात को भोला मामा लाठी लेकर घर के सामने टहलने लगे।
अमर ने भी भोेला मामा के साथ रात भर जागने का निश्चय किया। माँ-पिता जी और दादा-दादी ने बहुत मना किया, पर वह कहाँ मानने वाला था। आखिर उसे भोला मामा के साथ रात भर पहरे पर बैठने की इजाजत मिल गई।
अब वे आँगन में बैठकर पहरा देने लगे। पता नहीं क्यों आज वे बहुत हँस रहे थे। एक-दूसरे को चुटकुले सुनाते और हँसते। बीच-बीच में भोेला मामा कहते- ‘‘चलो अब सोते हैं।‘‘
“अमर याद दिलाता कि आज रात भर जागना है.” तो मामाजी झेंप जाते। बोलतेे- ‘‘अरे, मैं तो भूल ही गया था।’’
बाहर खूब हो-हल्ला मचा हुआ था। कोई तेज आवाज लगाता “रूक जाओ, अरे उसे मत ले जाओ”, “पकड़ो-पकड़ो, वह देखो लकड़ी लेकर भाग रहा है,” तो कहीं से आवाज आतीेे- “पहचान लिए हैं बच्चू, सुबह बताएँगे तुम्हें।”
रात लगभग दो बजे का समय रहा होगा। अमर लघुशंका के लिए बाहर निकला तब भोला मामा ऊँघ रहे थे। अंधेरा होने से अमर वहाँ रखे टिन के घड़े से टकरा गया।
मामा जी एकदम से चौंक पड़े। उन्हें लगा कोई उनके यहाँ लकडी़ लेने घुस आया है। वे डंडा लेकर दौड़े, पर एकदम से रूक गए। उनका दिमाग तेजी से काम करने लगा। उन्होंने सोचा कि “मारपीट करूँगा तो हो-हल्ला होगा। सब लोग जाग जाएँगे। हो सकता है कि ज्यादा लड़के हो, तो उसकी धुलाई भी कर दें।” उन्होंने अपने रूमाल में चुपके से बेहोशी की दवा डाली और अंधेरे में लघुशंका कर रहे अमर के नाक पर रख कर बोले- ‘‘अच्छा तो बच्चू, यहाँ छिपे हो। सबेरे मजा चखाता हूँ। अभी तो तुम यहीं पड़े रहो।’’
सुबह जब दादा जी सोकर उठे तो देखा कि आँगन में नौकर भोला तो सोया पड़ा है, पर अमर नहीं दिखा। उन्होंने भोेला को जगाया और पूछा- ‘‘अमर कहाँ है ?’’
‘‘अमर, कौन अमर ?’’ हड़बड़ाते हुए भोला ने पूछा।
‘‘अरे बुद्धु, वही अमर जो तुम्हारे साथ रात को पहरेदारी कर रहा था।’’ दादाजी ने कहा तो उसे कुछ याद आया। बोला- ‘‘बाबू जी, लगता है बहुत गड़बड़ हो गई है।’’ और वह दौड़कर गौशाला की ओर भागा।
दादाजी भी पीछे-पीछे आए। वहाँ का दृश्य देखकर वे हतप्रभ रह गए। गौशाला में जानवरों के बीच बंधा अमर बेहोश पड़ा था। रात भर ठंड में पड़े रहने से उसे बुखार हो गया। उसे तुरंत शहर के अस्पताल में भर्ती करया गया।
तीन दिन बाद उसे अस्पताल से छुट्टी मिली.
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़

*डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा

नाम : डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा मोबाइल नं. : 09827914888, 07049590888, 09098974888 शिक्षा : एम.ए. (हिंदी, राजनीति, शिक्षाशास्त्र), बी.एड., एम.लिब. एंड आई.एससी., (सभी परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण), पीएच. डी., यू.जी.सी. नेट, छत्तीसगढ़ टेट लेखन विधा : बालकहानी, बालकविता, लघुकथा, व्यंग्य, समीक्षा, हाइकू, शोधालेख प्रकाशित पुस्तकें : 1.) सर्वोदय छत्तीसगढ़ (2009-10 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी हाई एवं हायर सेकेंडरी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 2.) हमारे महापुरुष (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 10-10 प्रति नि: शुल्क वितरित) 3.) प्रो. जयनारायण पाण्डेय - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 4.) गजानन माधव मुक्तिबोध - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 5.) वीर हनुमान सिंह - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 6.) शहीद पंकज विक्रम - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 7.) शहीद अरविंद दीक्षित - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 8.) पं.लोचन प्रसाद पाण्डेय - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 9.) दाऊ महासिंग चंद्राकर - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 10.) गोपालराय मल्ल - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 11.) महाराज रामानुज प्रताप सिंहदेव - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 12.) छत्तीसगढ रत्न (जीवनी) 13.) समकालीन हिन्दी काव्य परिदृश्य और प्रमोद वर्मा की कविताएं (शोधग्रंथ) 14.) छत्तीसगढ के अनमोल रत्न (जीवनी) 15.) चिल्हर (लघुकथा संग्रह) 16.) संस्कारों की पाठशाला (बालकहानी संग्रह) अब तक कुल 16 पुस्तकों का प्रकाशन, 60 से अधिक पुस्तकों एवं पत्रिकाओं का सम्पादन. अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादक मण्डल सदस्य. मेल पता : pradeep.tbc.raipur@gmail.com डाक का पता : डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा, विद्योचित/लाईब्रेरियन, छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम, ब्लाक-बी, ऑफिस काम्प्लेक्स, सेक्टर-24, अटल नगर, नवा रायपुर (छ.ग.) मोबाइल नंबर 9827914888