लघुकथा

कोरोना : महागुरु

सीखने की कोई उम्र नहीं होती. मनुष्य जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत कुछ-न-कुछ सीखता ही रहता है. सीखने के लिए गुरु को ढूंढना भी नहीं पड़ता, गुरु अपने आप सामने आ जाते हैं. किसी छोटे बच्चे, बड़े-बुजुर्ग, शैक्षणिक गुरु, आध्यात्मिक गुरु से लेकर जीव-जंतु, घटना, दुर्घटना हमारे गुरु बन जाते हैं. अभी हाल ही में महामारी कोरोना ने महागुरु की भूमिका निभाई.
कोरोना यानि एकांतवास. गले पड़े हुए इस एकांतवास की आपदा को लोगों ने भुगता ही नहीं, उन्नति का अवसर भी बना लिया. हमने ऑनलाइन ऑडियो बनाना सीखा और अपने भजन संग्रह के पूरे 108 भजनों का ऑडियो बनाया, ढेरों किताबें पढ़ीं. जिनको नृत्य का शौक था, उन्होंने नृत्य का अभ्यास किया. बहुत-से नवाचार भी हुए. सारे काम बाकायदा चलते रहे. आशा भोंसले अपने घर से गाना गा रही थी, म्यूजिक वाले अपने-अपने घरों से म्यूजिक दे रहे थे. लड़की अपने घर, लड़का अपने घर, शादी हो गई. ऑनलाइन शगन का लेन-देन, ऑनलाइन शिक्षण, ऑनलाइन क्रय-विक्रय लोगों ने सीखा. ऑनलाइन ऑफिस भी चले. लोग अपनों के अंतिम दर्शन न कर पा सकने, खुद अंतिम संस्कार न कर पा सकने का भी धैर्य जुटा पाए.
समय की बलिहारी है, महामारी कोरोना महागुरु बन गया.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244