कविता

“अवज्ञा” : महासंताप

“अवज्ञा” शब्द का है ज़ायका अपना,
“अवज्ञा” देश-परिवार के हित में : देशभक्ति
“अवज्ञा” देश-परिवार के अहित में : देशद्रोह
“अवज्ञा” के लिए मन में हो : पावन प्रेम-शक्ति.
“अवज्ञा” महात्मा गांधी ने की अंग्रेजों के विरुद्ध,
“अवज्ञा” वह थी आजादी के लिए एक युद्ध,
साथ दिया पूरे देश ने इस युद्ध में उनका,
“अवज्ञा” सविनय होकर हो गई पूर्ण शुद्ध.
“अवज्ञा” गुरुजनों की बड़ा अभिशाप है,
“अवज्ञा” सद्गुणों की महान पाप है,
“अवज्ञा” से अहित होता है अपना भी,
“अवज्ञा” आनंद न होकर महा संताप है.
(03 जुलाई “अवज्ञा दिवस” पर विशेष)

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244