कहानी

कहानी – पंचायत का मुक्का

एक पल को लगा पूरी पंचायत को सांप सूंघ गया हो…!

” अगर हमर साथ भेद भाव होतअ आर नियाय नाय मिलतअ तो..ई मामला.हम जनता अदालत में ले जिबअ..!” बकरी मालिक मेघलाल की पत्नी पुरनी देवी अचानक से बोल उठी थी ।

उसकी बातों से जो विस्फोट हुआ, उससे पंचायत में ऐसी खामोशी छाई कि उबरने में काफी वक्त लग गया था। तब किंकर्तव्य विमुढ बैठे मुखिया गिरधारी महतो के मुख से निकला था-” यह तो सीधे- सीधे धमकी है…!”

मुझे लगा, इसके बाद पंचायत में बैठे लोग उठ भागेंगे । परन्तु अबकी बार ऐसा कुछ नहीं हुआ । न मुखिया उठे न पंचायत उठी । दम साधे सभी बैठे रहे । कुछ देर पहले तक पंचायत शोर-शराबे में डुबे  हुए था,  अब वहां सन्नाटा पसर गया था । भचर-भचर करने वाले तक ऐसे खामोश पड़ गये थे-मानो किसी ने पंचायत के बीच में जिंदा बम रख दिया हो…!”

आज की पंचायत से लोगों की यादें एक दम से ताजी हो उठी थी । दस साल पहले भी इसी जगह पर इसी तरह खेती किसानी पर एक पंचायत बैठी थी ।  बैंगन-टमाटर चोरी करते फुचा मुंडा पकड़ा गया था । तब कोका महतो ने पकड़ कर हड्डी-पसली में ऐसी कुटाई कर दी थी कि वह पच से हग दिया था । पर कोका महतो का गुस्सा तो कपार पर चढ़ा हुआ था-उसकी मेहनत से उगायी चीज ऐसे कोई कैसे खा सकता है, उसने फुचा को गूह खाने पर मजबूर कर दिया था । अगले दिन

शाम को बड़ी मुश्किल से पंचायत बैठी,पर पंचायत का फैसला कोका महतो ने मानने से साफ इंकार कर दिया था-” कोई हमर चीज चुराय ले जाए और उल्टे हम ओकर से माफी मांगबअ ? ई फैसला हमरा मंजूर नाय..!” और इसी के साथ कोका महतो विदक कर पंचायत से चला गया था । किसी के सुझाव पर

दूसरे दिन, दोपहर को भूखे-प्यासे फुचा पहुंचा था एक जन अदालत में । यह कोई सरकारी जन अदालत नहीं थी-यह जनता अदालत थी-नक्सली मूवमेंट की !  जहां सबकी सुनी जाती थी और फैसला भी सबका होता था । घने-विशाल जंगलों के बीच खुले मैदान में लगी जनता अदालत कोई गांव की पंचायत नहीं थी। यहां किसी की सिफारिश की जरूरत नहीं थी । यह जनता की अदालत थी यहां कोई पंच परमेश्ववर भी नहीं था । यहां सिर्फ न्याय और दंड विधान था । दूध का दूध और पानी का पानी ! जनता अदालत की यही अपना उसूल था । यहां गरीब असहाय लोग अपनी फरियाद लेकर आते और जनता अदालत के फैसले को ओढ़े वापस जाते थे । फुचा मुंडा एक किनारे दुबक कर बैठा हुआ था । जब उसकी फरियाद सुनी जा रही थी -सूर्य घने जंगलों की गोद में समाता जा रहा था । अंधेरा होने में कुछ ही समय बचा था ..!

रात के दस सवा का वक्त था । अचानक पन्द्रह बीस की संख्या में लोग कोका महतो के घर में घूसे और खटिया समेत उसे उठा ले गए । कुछ का कहना था कि उसे सूअर की तरह टांग कर ले जाया गया था ।

दूसरे दिन जनता अदालत में थूक चाटकर अपनी जान वापस लेकर रात के अंधेरे में घर लौटा था कोका महतो ..!

” दूबारा ऐसी हिमाकत की तो गांड़ में बंदूक की नाली घूसेड कर गोली मार देंगे, आदमी को इंसान नहीं समझता…!” जब तक जीवित रहा कमांडर समीर दा की बोली कोका महतो की कानों में गूंजती रही थी ।

लोगों को वो घटना और वे चेहरे अकस्मात स्मरण हो आये थे । टूपलाल में कोका और फुचा मुंडा में मेघलाल नजर आने लगा था ।

अक्सर लोग कहते हैं कि खेती किसानी सबके बस की बात नहीं है । हल  से लेकर शरीर के हाड तक हिलाने पड़ते हैं तब कहीं फसलों की पक्की बालियां किसान के खलिहान तक पहुंचती है । समय – समय पर लठा-कुण्डी से पन्द्रह-बीस फीट नीचे कुएं से निकाल कर फसलों को पानी देना, शरीर का खून  पानी की तरह पसीना बहाना,दिनों दिन मंहगी होती खाद-बीज से किसानी कार्यों को और भी कठिन बना देना । ऐसे में किसी का फसल कोई चरा दे या कोई जानवर चर जाएं, और बारिश से फसलों का बर्बाद हो जाना,हताश ! किसानों की जान पर आ पड़ना । यह सब कुछ जान-बूझकर भी टूपलाल ने खेती को एक चुनौती के रूप में लिया था । लिया था क्या किसानी से लग गया था । अब खेती-बारी ही टूपलाल के लिए सब कुछ था और फसलों की पैदावार पर निर्भर थी उसकी घर-गृहस्थी और उसका परब-उनकी हंसी-खुशी ।  उसके घर की माली हालत किसी को जानना हो तो उसकी बड़ी बेटी की फटी चुनरी और फटी एड़ियां देख कर अंदाजा लगा सकते हैं ।

ऐसे में इस बछर अपने खेत में लहलहाते गरमा मकई को देख टूपलाल का मन काफी गदगद था और दूसरे खेत में लगी सब्जियों को देख उसकी पत्नी की भी कई इच्छाएं लहलहाने लगी थी, जो शादी के पन्द्रह साल बीत जाने के बाद भी आज तक पूरी नहीं हो पाई थी ।

हर दिन सूर्योदय से पहले दोनों पति-पत्नी खेत पहुंच जाते और बड़े प्यार से टूपलाल मकई की बढ़ती बालियों को छू छू कर देखता और उसका  लंबा-मोटा नापा करता था उधर उसकी पत्नी कदू .करेला.भिंडी,परोर और खीरा ककड़ी की साइज़ नाप रही होती । फसलों के बढ़ते आकार देखना कितना सुखद अनुभूति होती!  उन सबमें उन्हें रूपए लटकते नजर आते । कभी कभी उसकी पत्नी के कानों में पायल बजने की आवाज सुनाई देने लगती थी । खेती के प्रति समर्पित टूपलाल और उसकी पत्नी गांव में चर्चा के विषय बने हुए थे  ।

तभी वो घटना घटी थी । टूपलाल के हाथों एक गाभिन बकरी की मौत हो गई थी, ऐसा उस पर आरोप लगाया गया था । सच्चाई जो भी थी,बकरी की मौत ने गांव के दो गुसटियों के बीच गोबर पहलवानी का मौका दे दिया था ।

आए दिन किसानों की आती आत्म हत्याओं की खबरों ने भारत जैसे विकासशील देश में खेती कार्य पर ही बहुत बड़ा प्रश्न खड़ा कर दिया था । ऐसे में पहले कपड़े की दुकान का फटेहाल होना फिर किराना दुकान का उधार में डूब जाने से टूपलाल का पहले से ही बुरा हाल था । वक्त ने उसकी हिम्मत और हौसले को अपाहिज बना कर रख दिया था । सारे रास्ते बंद देख  खेती में उसका उतरना एक हनुमान कूद ही तो था । अब इसमें उसका खुद का हाथ पैर टूटे या फिर किसी दूसरे का वो तोड़े-दोनों ही सूरत में टूटना तो तय था ..!

टूपलाल काफी मेहनती था, इसमें कोई शक नहीं था । बहुत गहन चिंतन-मनन के बाद ही उन्होंने अपनी दो खेतों में गरमा फसल लगाने की सोची थी, एक में मकई और दूसरे में सब्जियां लगा दी गई थीं । दोनों खेतों को मजबूती से घेरावबंदी कर दी गई थी । रखवाली में भी कोई कोताही नहीं । दिन का खाना वो खेत में ही खाता और देर रात घर आता था । इतना चाक चौबंद सुरक्षा के बावजूद इधर दो दिन से एक काली गाभिन बकरी घेरावन में सेंधमारी कर सब्जियों को खा जा रही थी-लतरियों को टुंग दे रही थी । यह बात बकरी मालिक को पता थी कि बकरी उसकी गुनाह कर रही है लेकिन लापरवाह बना रहा । टूपलाल को पता चला तो उसने बकरी मालिक को सावधान किया-चेताया भी था -” बकरी संभालो, वरना उसकी खैर नहीं !

-” यह उसकी बकरी नहीं है..!” बकरी मालिक साफ मुकर गया था । टूपलाल खदबदा कर रह गया था ।

ठग-ठगी छोड़ नहीं सकता है और चोर-चोरी से मुंह नहीं मोड़ सकते । टूपलाल बकरी और बकरी मालिक दोनों को सबक सिखाने की ठान लिया था ।

चालू बकरी तीसरे दिन जैसे ही टूपलाल की खेत घूसी,घात लगाए बैठा टूपलाल ने झपट कर बकरी को धर दबोचा, जैसे सियार मुर्गियों को दबोचता है, फिर तो मुंहे-गांडी उसकी कुटाई शुरू हो गई । बकरी की जोर से मिमियाने की आवाज सुन बकरी मालिक मेघलाल उधर दौड़ा  । यह देख बकरी छोड़ टूपलाल मेघलाल पर चढ़ दौड़ा था-” तुम तो कहता था कि यह बकरी मेरी नहीं है फिर काहे दौड़ा चला आया, सियान आदमी होकर और जानबूझ कर दूसरों की खेती चराते तुझे लाज शर्म नहीं आता है..!”

मेघलाल का मुंह नहीं खुल पाया । मुंह लटकाए बकरी लेकर चला आया था ।

शाम को हो-हल्ला से पता चला कि बकरी मर गई । और मरी हुई बकरी को मेघलाल की पत्नी ने टूपलाल के घर दरवाजे के बाहर लाकर रख दी थी

और मुआवजे के तौर पर पांच हज़ार की मांग कर रही । जवाब में टूपलाल की मेहरारू ने मोर्चा संभाला और फसल चरने के हर्जाने के तौर पर दस हज़ार की दावा ठोंक  कर मामले को गंभीर बना दिया ।

देर रात तक दोनों औरतों ने जीत हासिल कर लेने की पूरी कोशिश की परन्तु काफी रात  गयी लेकिन उन दोनों में से किसी ने हार नहीं मानी-” सुबह दिखा देंगे ” मेघलाल की मेहरारू बोलती चली गई ।

-”  जा-जा ढोंगा के पानी में मुंह धोकर आना…!” टूपलाल की मेहरारू ने ललकारी थी-“एक तो चोरी, ऊपर से सीना जोरी-नाय चलतो…!”

दूसरे दिन शाम को पीपल पेड़ के नीचे चबूतरे पर पंचायत बैठी । पेड़ पर पक्षियों का आना शुरू हो गया था और पंचायत में लोगों का भी । शुरू में देर तक शोर गुल होता रहा । आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी रहा । लोग बोल कम – चीख ज्यादा रहे थे । सो कुछ भी स्पष्ट नहीं था । दोनों पक्ष अपनी जिद्द पर अड़े रहे ।

तभी दूर से मुखिया गिरिधारी महतो आते दिखे । हल्ला में हल्की कमी आई । मुखिया के आसन्न ग्रहण करते ही पंचायत शुरू हो गई थी । मुखिया ने बारी-बारी से दोनों पक्षों की बात सुने । टूपलाल ने खेती को अपनी रोजी-रोटी और जीविका का मुख्य जरिया बतायी-” मुझे उचित हर्जाना मिलना चाहिए..! ” उसने अपनी बात पूरी की थी ।

वहीं बकरी मालिक मेघलाल ने बकरी को अपनी आय का मुख्य स्रोत बताया था-” टूपलाल के मारने से मेरी बकरी मरी है, मुझे इसकी कीमत मिले…!”मेघलाल ने अपनी बात रखा था ।

मामले की जटिलता देख मुखिया ने दोनों पक्षों से दो दो सदस्य चुनने को कहा और पांचवें सदस्य मुखिया ने उन चारों के बीच भेज दिये थे । पन्द्रह मिनट में पंचों के विचार पंचायत के सामने आ गई थीं । सभी की एक ही राय-” किसी भी किसान के लिए, उसकी खेती ही जीने का मुख्य जरिया होता है, किसी भी फसल को तैयार करने में किसान और उसके पूरे परिवार की सम्मिलित हाड तोड़ मेहनत का फलाफल होता है । ऐसे में अगर किसी की लापरवाही या जलन से उसकी फसल चर जाएं-या कोई चरा दें, तो उस किसान पर क्या बीतती है-यह खेती करने वाले कोई किसान ही बता सकतें हैं-चराने वाला चिरकुट नहीं !.चेतावनी देने के बाद अगर मेघलाल अपनी बकरी पर नजर रखता तो उसकी बकरी को मारने के लिए टूपलाल उसके घर नहीं आता-टूपलाल निर्दोष है..! बकरी मरी तो इसका जिम्मेवार खुद मेघलाल है टूपलाल नहीं । मेघलाल की बकरी मरी तो टूपलाल की फसल भी चरा है दोनों को सहना पड़ेगा…!”

इसके बाद पंचायत में चुप्पी छा गई थी। मुखिया का मुख भी बंद हो गया था ! तभी नारी स्वर ने सबों को चौंकाया था-” हमर साथ नियाय नाय होतअ तो हम जनता अदालत में जिबअ…!” यह थी मेघलाल की पत्नी पुरनी देवी।

” हमारे साथ इंसाफ नहीं हुआ..!”मेघलाल ने जोड़ा था ।

पंचायत में सन्नाटा पसर गया था । अजीबोगरीब हालात ! कोई कुछ बोलने की स्थिति में नहीं,सब अपनी मुंह चुराते नजर आने लगे । मानो, मुंह खोलना मुसीबत मोल ले लेना था । सबकी हालत एक जैसी-सांप- छछुंदर वाली ! पक्षियों तक में सन्नाटा छा गया था ।

” तो तुम दोनों पति पत्नी इस मामले को जनता अदालत में ले जाना चाहते हो. ठीक है, ले जाओ…!’, सहसा अपने कंधे का गमछा झाड़ते हुए मुखिया गिरिधारी महतो उठ खड़े हुए थे । एक बार उन्होंने पूरी पंचायत का मुआयना किये । खचाखच भरी पंचायत को देख मन को बल मिला । पूरा गांव उनके साथ खड़ा है । सीना तान कर बोले-” पंचायत का फैसला पूरे गांव का फैसला होता है और तुम दोनों पंचायत के फैसले के खिलाफ मरी हुई बकरी का मामला लेकर जनता अदालत में जाना चाहते हो.. ठीक है.जाओ,हम नहीं रोकेंगे.. लेकिन एक बात सुनते जाओ, आज की पंचायत एक फैसला लेती है , आज से -अभी से ही हम तुम्हें गांव-समाज से बाहर-बाड  करते हैं …तुम्हारा बहिष्कार किया जाता है । आज से पूरे गांव में तुम्हारा हुक्का पानी सब बंद रहेगा और यदि किसी ने तेरे साथ संबंध रखा या रखने की कोशिश भी की उसे पांच हज़ार जुर्माना भरना पड़ेगा…!”

” मुखिया जी ठीक कहते है.ठीक कहते है..!”का स्वर उठा ।

मेघलाल ने पत्नी की ओर देखा, दोनों गहरी सोच में डूबे दिखे थे,डर का भाव भी दोनों के चेहरे पर उगते देखा लोगों ने ।

मुखिया जी अब भला रूकने वाले कहां थे । गरजते रहे-” मुझे भी मालूम है, जनता अदालत में तुम्हारा कोई रिश्तेदार भी बैठता है लेकिन तुम्हें शायद नहीं मालूम वे लोग भी इंसान होते हैं और सही-गलत का फैसला जांच पड़ताल करने के बाद ही करते हैं । तुम गलती भी करोगे और पंचायत को धमकी भी दोगे.. तुम्हें पता नहीं, पंचायत समाज का बाप होता है और बाप को धमकाया नहीं जाता, उसके आगे माथा झुकाया जाता है, और सुन लो, जरूरत पड़ी तो पूरा गांव समाज भी जायेगा- जनता अदालत में,चेतावनी देने के बाद भी तुमने बकरी को फसल चरने छोड़ दिया, यह तुम्हारी सबसे बड़ी गलती थी । अपनी गलती मानने की बजाय पंचायत से सीना जोरी कर रहे हो…!”

” हम सभी मुखिया जी के साथ हैं…!” एक सामुहिक स्वर गूंज उठी थी ।

” हमरा माफ कर देअ मुखिया जी..!”मेघलाल की पत्नी हाथ जोड़ खड़ी हो गई थी।

” गलती हो गयी मुखिया जी, हमें माफ कर दीजिए..!”  आगे बढ़ कर दोनों पति-पत्नी मुखिया जी के पैर पकड़ लिए ।

” मुझसे नहीं..उठो और पंचों से माफी मांगो..!” मुखिया का बुलंद आदेश  ।

” पंच परमेश्ववर से हम माफी मांगते हैं, हमसे गलती हुई, हमें माफ कर दो…!”

इसी के साथ मेघलाल टूपलाल के पास पहुंचा था-” दादा, हमें माफ कर दो, अपनी गलती के कारण बकरी खो लिया…!”

टूपलाल ने मेघलाल को गले से लगा लिया । दोनों के आंखों में आंसू आ गये ।

पंचायत में हर्षोल्लास छा गया-” पंच परमेश्ववर की जय…!” किसी ने कहा

” पंच परमेश्वर की जय…!” पीछे से सब बोल पड़े !!

समाप्त !

— श्यामल बिहारी महतो

*श्यामल बिहारी महतो

जन्म: पन्द्रह फरवरी उन्नीस सौ उन्हतर मुंगो ग्राम में बोकारो जिला झारखंड में शिक्षा:स्नातक प्रकाशन: बहेलियों के बीच कहानी संग्रह भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित तथा अन्य दो कहानी संग्रह बिजनेस और लतखोर प्रकाशित और कोयला का फूल उपन्यास प्रकाशित पांचवीं प्रेस में संप्रति: तारमी कोलियरी सीसीएल में कार्मिक विभाग में वरीय लिपिक स्पेशल ग्रेड पद पर कार्यरत और मजदूर यूनियन में सक्रिय