कविता

मैं उड़ती नील गगन में

काश मेरे भी पर होते,
मैं उड़ती नील गगन में।
जी लेती सारी खुशियाँ,
दबी हुई जो अन्तर्मन में।
               अठखेलियाँ सूरज दादा संग,
              चँदा मामा संग हँसी-ठिठोली।
               सैर सपाटे करती दिनभर,
               मैं इठलाती नंदन वन में।।
डाली-डाली इतराती,मँडराती
सुवासित फूलों की बगियन में।
नित तितली बन उड़ती रहती ,
बगिया गूंजे भँवरों के गुंजन में।।
               झर-झर झरनों के संग-संग,
               गुंजित होता नवगीत मन में।
               सुरभित फूलों की बगिया हो,
               हर्षित मन हो जन-जन में।
— महेन्द्र साहू “खलारीवाला”

महेन्द्र साहू "खलारीवाला"

मैं, एक शिक्षक हूँ। कविता लिखना मुझे अच्छा लगता है। ग्राम-खलारी, पोस्ट-कलंगपुर तहसील-गुंडरदेही, जिला-बालोद (छ ग) पिन कोड-491223 मो नं 9755466917