कविता

अच्छा गुरु

गुरु यदि अच्छा हो तो सब कुछ मिल जाता है
लेकिन अच्छा गुरु आजकल कम ही नज़र आता है
बाबा ढोंगी पाखंडियों ने कर दिया गुरु को बदनाम
अय्याशी पाखंड फरेब करना रह गया जिनका काम
लोग भी कम दोषी नहीं अंधभक्ति दिखाते हैं
भेड़ चाल में ऐरे गैरे नत्थु खैरे के भक्त बन जाते हैं
गुरु का दर्जा गोविंद से भी बड़ा माना जाता है
गुरु ही है जो अपने शिष्य को गोविंद से मिलाता है
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को यह दिवस मनाते हैं
गुरुओं को इस दिन श्रद्धा से सब शीश नवाते हैं
वेदों का ज्ञान दिया ब्यास ने ऐसा शास्त्र बताते है
इसीलिए तो वेद ब्यास पहले गुरु कहलाते हैं
असली गुरु भक्त को अपने ज्ञान से राह दिखाता है
उस ज्ञान से भक्त भवसागर पार कर जाता है
ऐसे गुरु कहाँ मिलते निर्लोभी संतोषी और हों निष्काम
गुरु अगर ज्ञानी है तो उस्के चरणों में सारे धाम
गुरु अगर लोभी है तो बेकार है फिर उसका ज्ञान
मन में उसके चाहत होगी क्या करेगा वो कल्याण
माता पिता और गुरु जगत में इनसे कोई नहीं बड़े
यदि मुसीबत आ जाये तो रहते यह तीनों ही खड़े
माता पिता और गुरु का जो करते नहीं सम्मान
शक्ति है कितनी तीनों में नहीं है उनको ज्ञान
— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र