कुण्डली/छंद

कुंडलिया – गुरुवर तुम हो दिव्य

भायी गुरुवर दिव्यता,तुम तो हो भगवान।
तुमने दिया विवेक तो,हुआ सत्य  का भान।
हुआ सत्य का भान,नहीं तो मैं मिट जाता।।
हो जाता अवसान,ज़िन्दगी भर भरमाता।।
मिला मुझे तो हर्ष,प्रीति तो मुझे सुहाई।
चिंतन का उत्थान,ज़िन्दगी मुझको भायी।।
खिलता है जीवन तभी,जब गुरुवर हैं संग।
कर देते जो ज़िन्दगी,सचमुच में नवरंग।।
सचमुच में नवरंग,आत्मा पावन करते।
दे सच का संसार,झूठ को पल में हरते। ।
जब सच का संसार,उजाला तब ही मिलता।
हर पल बिखरे हर्ष,गुरू से जीवन खिलता।।
तुम हो यदि नित संग तो,मैं नित ही बलवान।
तुमसे ही हिम्मत मिली,ऐ मेरे वरदान।।
ऐ मेरे वरदान,वंदना गुरुवर तेरी।
मेरा जीवन दिव्य,जि़न्दगी फेरी मेरी।।
कर्मों में अब योग,दूर अब तो सब ग़म हो।
गुरुवर मेरे नाथ, सूर्य के जैसे तुम हो।।
 — प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com