“कागा जैसा मत बन जाना”
बालकविता “कागा जैसा मत बन जाना”
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)ॉ
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बारिश से भीगा है उपवन
हरा हो गया धरती का तन
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कोयल डाली-डाली डोले
लेकिन पंचम सुर में बोले
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आम पेड़ पर जब गदराते
तब कोयल के बोल सुहाते
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यह अपनी धुन में है गाती
सबको मीठा राग सुनाती
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कर्कश सुर में कभी न गाना
कागा जैसा मत बन जाना
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अपनी वाणी मधुर बनाओ
अच्छी बातों को अपनाओ
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