स्वास्थ्य

खराब गुर्दों का प्राकृतिक उपचार

यदि किसी व्यक्ति के गुर्दे आंशिक रूप से भी खराब हो जाते हैं, तो उसके घरवाले ऐलोपैथिक डॉक्टरों के कहने से यह मान लेते हैं कि अब डायलाइसिस कराने और आगे चलकर गुर्दा बदलवाने के अलावाकोई उपाय नहीं है। परन्तु यह धारणा पूरी तरह गलत है।
मेरा यह सुनिश्चित विचार है कि उचित प्राकृतिक चिकित्सा से गुर्दों का खराब होना न केवल रोका जासकता है, बल्कि उनको ठीक भी किया जा सकता है। यहाँ तक कि यदि डायलिसिस भी शुरू हो चुकाहो, तो भी गुर्दों को किसी दवा के बिना केवल प्राकृतिक उपचार से सही किया जा सकता है औरडायलिसिस से भी छुटकारा पाया जा सकता है। शर्त केवल यह है कि रोगी को निष्ठापूर्वक प्राकृतिकउपचार चलाना चाहिए और सभी आवश्यक परहेज करने चाहिए।
गुर्दा रोगी डॉक्टरों के कहने पर सबसे बडी ग़लती यह करते हैं कि वे पानी पीना बहुत कम कर देते हैं।मेरे एक चचेरे भाई इस रोग से पीड़ित थे। जाने किसके कहने पर वे सुबह एक साथ एक लीटर पानीपीते थे, फिर दिन भर बिल्कुल भी पानी नहीं पीते थे, जबकि चाय दो बार पी जाते थे।
मैंने उन्हें कई बार समझाया कि यह गलत है, आपको दिनभर थोडा-थोडा पानी पीना चाहिए, पर उन्होंनेमेरी बात नहीं मानी। परिणाम यह हुआ कि धीरे-धीरे उनके गुर्दे पूरी तरह खराब हो गये। वे बहुत दिनोंतक डायलिसिस पर रहे, फिर एक गुर्दा बदलवाया गया, जो पाँच साल में बेकार हो गया और अंततरू भाईसाहब को अपने प्राण त्यागने पड़े। लगभग सभी गुर्दापीड़ित यही ग़लती करते हैं।
इतनी बात समझ में आने पर खराब गुर्दों का उपचार किया जा सकता है। इसके लिए सबसे पहले तोउन्हें अपना आहार सुधारना चाहिए। सभी बाज़ारू चीज़ें बन्द करके बिना मिर्च मसाले का और बहुतकम सेंधा नमक डालकर घर का बना हुआ शुद्ध सात्विक शाकाहारी भोजन करना चाहिए। चाय कॉफीजैसी चीज़ें भी एकदम बन्द रखनी चाहिए।
इसके अलावा उनको सारे दिन लगभग 200 मिली पानी हर घंटे पर पीना चाहिए। इससे दिनभर मेंढाई लीटर जल हो जाएगा जो गुर्दों को सक्रिय रखने और रक्त को छानने की क्रिया चलाने के लिएपर्याप्त है। यह ध्यान रहे कि जितनी बार वे पानी पियें उतनी ही बार उनको मूत्र विसर्जन करने जानाचाहिए और इसमें बिल्कुल ज़ोर नहीं लगाना चाहिए।
जो व्यक्ति डायलिसिस पर रहते हैं, वे भी पानी की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाकर अपने खराब गुर्दों कोसक्रिय कर सकते हैं और कुछ ही दिनों में डायलिसिस से छुटकारा पा सकते हैं। उन्हें हर घंटे 100 मिली पानी पीने से शुरुआत करनी चाहिए।
इसके अलावा गुर्दापीड़ित व्यक्ति को नित्य प्रातरू और सायं 5-5 मिनट का ठंडा कटिस्नान लेकरअपनी शक्ति के अनुसार टहलना चाहिए और शुद्ध वायु में पाँच-पाँच मिनट कपालभाति औरअनुलोम-विलोम प्राणायाम भी करने चाहिए। गुर्दों को स्वस्थ करने में इनसे बहुत सहायता मिलती है।
— डॉ. विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]