गीतिका/ग़ज़ल

सावन

बहुत दिनों के बाद लगा कि सावन आया है,
धरती की अब प्यास बुझेगी, सावन आया है।
हर्षित होकर किसान खेत में, धान रौंप रहा है,
मेंढक टर टर बोल रहे हैं कि सावन आया है।
नदी नाले साफ़ हुये सब, कूड़ा करकट बहता,
ताल तलैया भरे हुए हैं कि सावन आया है।
झड़ी लगी बारिश की बचपन की याद दिलाती,
बचपन जैसा आज नहाया कि सावन आया है।
बच्चे भी तो खेल रहे हैं कागज की नाव बनाकर,
पचपन में बचपन देख रहा कि सावन आया है।
बारिश की दुश्वारियाँ माना बहुत अहम् हैं,
कुदरत ने अमृत बरसाया कि सावन आया है।
झूम झूम कर वृक्ष नाचते, पौधे भी इठलाते,
बहुत दिनों के बाद असल में सावन आया है।
— अ कीर्तिवर्द्धन