मौन
हाथों में लिए मोबाइल
मौन हुए बैठे हैं
न तुम कुछ बोलो
न हम कुछ बोलें
सारे जहां से करते हम बातें
पर मुँह से निकले न कोई बोल
ऑंखें गड़ी मोबाइल पर
कैसा इक सन्नाटा सा पसरा हुआ है
लगता है कोई आबाद नहीं घर में
हर और यही नज़ारा है
जाती जिधर भी नज़र