ग़ज़ल
मांग में सिंदुर है तो प्यार होती चूडियां।
फिर पति के सफर में इकरार होती चूडियां।
जिस तरह अम्बर में तारे चमक के प्रतीक हैं,
लड़की की पहचान सभ्याचार होती चूडियां।
चुप की अंगीठी में जैसे कोयले तपते नहीं,
गर नहीं छन छन समझ ले इकरार होती चूडियां।
गेंद गीटे या छटापू खेल की मुद्रा में हांे,
फिर उम्र की संगी होती यार होती चूडियां।
जिस तरह संतूर की लय में झनाहट थिरकती,
विश्व के संगती की झनकार होती चूड़ियां।
गगन भीतर तब ही पड़ता है इन्द्र धनुष कोई,
गोरी गोरी बाहों में रंगदार होती चूड़ियां।
चिलकती सी धूप ने सीखा चमकना दहकना,
क्योंकि प्रीतम के लिए दिलदार होती चूड़ियां।
यह तो चिंगारी भी हैं और शांत पंच गंगा भी,
वक्त के इन्साफ में हकदार होती चूडियां।
गर सवल्ली नजर है तो फिर पवित्र रहमतें,
नहीं तो फिर मकतल तले तलवार होती चूडियां।
घर के उत्सव में कभी हर्षता के पड़ते गिद्धे में,
आर होती चुडियां और पार होती चूडियां।
चांद सूर्य और सितारे इनका है प्रतिबिम्ब,
रौश्नी का चमकता भण्डार होती चूडियां।
जिस तरह वृक्ष के ऊपर हो खजूरें कच्ची सी,
या कि सुन्दर दिख रहा मीनार होती चूडियां।
जब यह पायल साथ सनकें तब तबाही मचती,
सूकते फनियर की फिर फुंकार होती चूडियां।
दामिनी हंस कामिनी की झलक करवा चौथ में,
फिर पति का प्यार अंगीकार होती चूडियां।
इन में जो भी रंगा सदा वह रंगीला हो गया,
खुबसूरत जल बिम्ब मंझदार होती चूडियां।
हिरण की तड़पन में गहरी वेदना की दास्तां,
ग़ज़ल की उपमा शिल्प अलंकार होती चूडियां।
भव्य बाहों में सिमट कर हो तो जन्नत बनती है,
देखने को वैसे तो बाजार होती चूडियां।
कद्र की कीमत गर हो तो मजा है जिंदगी,
दोस्ती के बिन सदा बेकार होती चूडियां।
बालमा किस को यह साहिल दें? किसे मंसदार दें?
जिंदगी के बीच खेवटहार होती चूडियां।
— बलविंदर बालम