लघुकथा

मिट्टी का घर

    बरसात का मौसम था, एक सप्ताह से लगातार हो रही बारिश में रामनाथ के मिट्टी के मकान की खपरैल से लगातार जगह से पानी टपकने लगा। वारिश की मार से दीवारें नम होती जा रही थीं। रामनाथ को अब मकान के गिरने का अंदेशा होने लगा था, आखिर मिट्टी की दीवारें कब तक बोझ सह सकेंगी।
   और वही हुआ, जिसका डर था,आधी रात को मकान गिर गया। शुक्र था कि आज वो सामने पड़ोसी की छप्पर के नीचे पत्नी और बेटे के साथ सोया था। इसलिए जान बच गई।
सिर से छत  खोने का दर्द रामनाथ और उसकी पत्नी के चेहरे पर साफ दिख रहा था। फिर भी दोनों ईश्वर का धन्यवाद कर रहे थे कि कम से कम हमारी जान बच गई, तो रहने का इंतजाम जैसे तैसे ही जायेगा।

*सुधीर श्रीवास्तव

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