मुक्तक
मुल्क की हिफ़ाज़त में चौकीदार लगा था,
सरहद की हिफ़ाज़त में सैनिक लगा था।
घर की हिफ़ाज़त का ज़िम्मा तो तुम्हारा था,
घर को जलाने में भीतर का ग़द्दार लगा था।
लगी है आग निज घर मे, अपनों के हाथ थे,
पाले जो मुल्क के ग़द्दार, तुम्हारे ही साथ थे।
चौकीदार की वफ़ा पर, सवाल उठाने वालो,
इज़्ज़त लूटने वालों के, तरफ़दार तुम्हीं थे।
बंगाल में हिंसा हुई, समर्थन में अड़े थे,
राजस्थान में बलात्कार, मौन खड़े थे।
दिल्ली और छत्तीसगढ़ दिखाई न दिया,
वर्षों से सुलगता मणिपुर, सोये पड़े थे।
बलात्कार की घटनाओं में भी जाति धर्म ढूँढते हो,
लाभ का मूल्यांकन कर, घटना का मर्म ढूँढते हो।
विरोधी राज्य की घटना, बनाती वोट समीकरण,
गिद्धों से बदतर हो, जो लाशों में कर्म ढूँढते हो।
— अ कीर्ति वर्द्धन