कविता

पहली बारिश

वो पहली बारिश सावन की

तन मन मेरा भिगा गई

नाच उठा मन मयूर सा मेरा

तपन हृदय की मिटा गई

रिमझिम रिमझिम सी बूंदें वो

याद प्रियतम की दिला गईं

जब जब गिरी गात पर मेरे

एहसासों में हलचल मचा गई

सिहर उठे जज़्बात मेरे सारे

मादकता नयनों में छा गई

स्पंदन बढ़ गया धड़कनों का

मस्ती अंग अंग में समा गई

नन्हीं बूंदें उस सावन की

मायने उल्फत के बता गई

शायद थी ख़ास वो पहली बारिश

प्यार मुझे जो करना सिखा गई

— पिंकी सिंघल

पिंकी सिंघल

अध्यापिका शालीमार बाग दिल्ली