लघुकथा

ईश्वर की लीला

एंबुलेंस तेजी से दौड़ रही थी। कृष्ण अपने पापा को  लेकर अस्पताल जा रहा था । रास्ते में एक जगह सड़क पर भीड़ लगी थी। एक पल के लिए वो भी ठिठका, फिर ईश्वर का नाम लेकर चालक से रुकने के लिए कहा।न नुकुर के बाद उसने एंबुलेंस को सड़क किनारे रोक दिया।      कृष्ण तेजी से बाहर आया तो देखा दुर्घटना का शिकार एक युवती लोगों से अस्पताल भिजवाने के लिए गिड़गिड़ा रही थी, पर लोगों की संवेदनाएं जैसे मर ही गई थीं। क्योंकि वहां उपस्थित कुछेक लोग एक दूसरे को अस्पताल भिजवाने का प्रबंध करने को ढेर रहे थे और कुछ वीडियो बनाने में व्यस्त थे।      कृष्ण ने कुछ सोचा और आगे बढ़कर युवती को अपनी बाहों में उठाकर एंबुलेंस में जैसे तैसे मां के साथ बैठाकर खुद भीतर आकर चालक से चलने को कहा।       चालक को शायद यह ठीक नहीं लगा। इसीलिए  बड़बड़ाते हुए उसने एंबुलेंस को बढ़ाया। थोड़ी देर में एंबुलेंस अस्पताल में थी।       कृष्ण पहले युवती को फिर अपने पापा को लेकर इमरजेंसी में पहुंचा।     दोनों का इलाज शुरू हो गया। युवती को मरहम पट्टी, इंजेक्शन आदि के बाद वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। लेकिन उसके पापा को भी एडमिट कर लिया गया और इलाज शुरू कर दिया गया। क्यों कि उन्हें हार्ट अटैक पड़ा था।      कृष्ण ने युवती से नंबर लेकर उसके भाई डाक्टर सरन को फोन कर सारी बात बताकर आने को कहा।       युवती का भाई सरन अस्पताल पहुंच कर जब रीमा से मिला तो युवती को सुरक्षित देख संतोष महसूस कर रहा था। उसने कृष्ण से कहा-भाई मैं तुम्हारा धन्यवाद आभार कैसे करुं? समझ नहीं पा रहा। लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि अब पापा का इलाज मेरी जिम्मेदारी है           चिंता छोड़कर पापा को लेकर हमारे साथ चलिए , सब मेरी जिम्मेदारी है। आपने मेरी बहन रीमा की मदद उस समय की,जब उसे सबसे ज्यादा जरूरत थी, हमारे पापा नहीं है। मैं आपके पापा को अपने पापा की जगह रखकर बेटे का कर्तव्य निभाऊंगा। हम दोनों को बहुत खुशी होगी, यदि आप मेरे आग्रह को स्वीकार करेंगे।     कृष्ण असमंजस से अपनी मां की ओर देखकर जैसी उनकी इजाजत चाह रहा हो।     रीमा ने कृष्ण की मां से कहा- मां। भाई को बोलो न कि पापा को लेकर हमारे साथ चले।       कृष्ण और सरन ने अस्पताल की औपचारिकता पूरी करने के बाद पापा को लेकर मम्मी, रीमा और डा. सरन के साथ चल पड़ा। रास्ते में वो सोच रहा था कि हे ईश्वर तेरी लीला निराली है। अब मुझे विश्वास है कि मेरे पापा को कुछ नहीं होगा। युवती उसका हाथ मजबूती से पकड़े हुए उसे आश्वस्त कर रही थी। उसने युवती के सिर पर स्नेह से हाथ फेरा तो रीमा ने नमः आंखों के साथ कृष्ण के कंधे पर सिर रख दिया।कृष्ण की मां आश्चर्य से कभी पति और कभी तीनों बच्चों को बलिहारी हो जाने वाली नजरों से देख रही थी।

*सुधीर श्रीवास्तव

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