स्वतंत्रता
बड़ा घमंड है हमें अपनी और
अपने देश की स्वतंत्रता का,
जब हम स्वतंत्रता के नाम पर
राष्ट्र, समाज, वर्ग, लिंग को
नीचा दिखाने में बड़ी शान समझते हैं,
नारियों को अपमानित करते
सैनिकों को नीचा दिखाते
राष्ट्र समाज को गुमराह करते,
जनता के प्रतिनिधि बनकर
अपनी तिजोरियां भरते हैं।
राष्ट्र विरोधी काम करने में भी नहीं पीछे रहते
चंद सिक्कों की खातिर
अपना जमीर तक बेचने को तैयार रहते,
अपनी जिम्मेदारी से मुंह चुराते हैं
सिर्फ चीखते चिल्लाते हैं,
खुद को सबसे ज्यादा होशियार समझते हैं।
अपनी इज्जत तक की परवाह भी
भला हम कहां करते हैं?
बेशर्मी से मुस्कराते हुए
खुद को शहंशाह समझते हैं।
स्वतंत्रता का मतलब हम भला क्या जानें?
क्योंकि
कौन सा हमने वो दौर देखा है
जब हमारे अपनों ने दुश्वारियां झेली थीं
आजादी की खातिर फाकें किए थे
दर बदर भागते रहे, छिपते छिपाते फिरते रहे ।
अपनी कुर्बानी दे देश पर बलिदान हो गए
अपनी मातृभूमि के लिए जाने कितने जुल्म सहे
और हंसते हुए शहीद हो गए।
यह और बात है कि आज वो गुमनाम हो गए।
पर हमें शर्म तक कहां आती है?
जब हम ही उनके बलिदानों का
अपमान लगातार करते जा रहे हैं,
और खुद को स्वतंत्र कह रहे हैं।
पर बड़ा प्रश्न है?
स्वतंत्रता का मतलब यह तो नहीं है
कि हम अपने पुरखों, पूर्वजों को
आजादी के मतवालों को ही नजर अंदाज करें
उनकी कठिन तपस्या, बलिदान का अपमान करें।
जिन्होंने जुल्मोंसितम सहकर, अपना लहू बहाकर,
अपनी जान देकर हमें यह स्वतंत्रता दी है
उनकी आत्मा पर हम ही प्रहार करें?
पर हम ऐसा ही तो कर रहे हैं,
स्वतंत्रता का ग़लत मतलब निकाल रहे हैं.
क्योंकि हम स्वार्थ में अंधे हो गए हैं,
आजादी का अर्थ समझ ही नहीं पा रहें हैं
आजादी पर ही कुठाराघात करके
हम खुद पर बड़ा गर्व कर रहे हैं।
मां भारती का अपमान कर
खीसें निपोर रहे हैं
और हम तो स्वतंत्र हैं
कहकर बड़ा खुश हो रहे हैं।