मुक्तक/दोहा

हिन्दुवादी

कुछ हिन्दुवादी खुद को श्रेष्ठ समझते हैं, 

सहिष्णु दिखाने का बड़ा नाटक करते हैं। 

अपने ही कार्यकर्ताओं पर शिकंजा कसते, 

खुद को न्यायकारी होने का दंभ भरते हैं। 

 कोई हमें मारे तो हम चुपचाप मर जायें, 

विरोध का कोई स्वर भी मुँह से न उचारें। 

बहन बेटियों से बलात्कार, क़ानून देखेगा, 

अत्याचारियों के विरूद्ध न्याय को न पुकारें। 

 मन्दिर तोडना अल्पसंख्यकों का अधिकार, 

कार्यवाही क्या होगी, सरकार का अधिकार। 

देवी- देवताओं का अपमान वह कर सकते हैं, 

इस्लाम के सच पर सजा, यह उनका अधिकार। 

 कब तलक धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा ओढ़ें, 

कब तलक खुद की आँख में धूल को झौंके? 

धर्मनिरपेक्ष होने का मतलब सनातन विरोध, 

बस सनातनी को ही हिन्दुत्व विचार से मोड़ें। 

 — अ कीर्ति वर्द्धन