कविता

मेरी बेटी मेरा अभिमान

बड़ा अच्छा लगता है यह कहना
अभियान चलाना, स्लोगन लिखना लिखना
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान चलाकर
अपनी अपनी पीठ थपथपाना
मेरी बेटी मेरा अभिमान का गाना गाना।
पर ईमानदारी से ये कह पा रहे हैं
बिना संकोच में बात अपने आप से कह पा रहे हैं,
या खुद को भरमा कर बड़ा गुमान कर रहे हैं।
आज जब हमारी बेटियां धरती से आकाश तक
झंडे गाड़ कर देश का मान बढ़ा रही हैं
हमारे साथ कदम से कदम मिला रही हैं।
पर फिर क्या ये प्रश्न बड़ा नहीं है
हमारी बेटियों का अपमान और
उत्पीड़न कम क्यों नहीं हो रहा है?
हमारी मां बहन बेटियों के मन का डर
अभी भी क्यों नहीं निकल पा रहा है?
हम हों या आप, समाज हो या सरकार
सबको अपने गिरेबान में झांकने की जरूरत है
मेरी बेटी मेरा अभिमान कहने भर से
अब बात नहीं बनने वाली,
हर किसी को अपनी अपनी जिम्मेदारी
ईमानदारी से निभानी होगी।
तब हम आप मेरी बेटी मेरा अभिमान कहें
अन्यथा बेटियों को बरगलाना बंद करें,
कम से कम कुछ तो शर्म करें
अब तो अपनी पीठ खुद से
थपथपाने में परहेज करें।
मेरी बेटी मेरा अभिमान है का गर्व जरुर करें
पर बेटियों के मन का डर पहले दूर तो करें।
उनके हौसले को मजबूत तो करें
बेटी होने का उनको भी अभिमान हो
पहले ऐसा माहौल तो विकसित करें,
तभी मेरी बेटी मेरा अभिमान कहेे।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921