14 सितंबर हिंदी दिवस पर विशेष
पहाड़ काट हरियाली खा गए,
महल बनाए हमने।
बालकनी बगिया लहराई,
चमन मिटाए हमने।।
गांव मिटे और नगर बन गए
नेह गेह के मरम मिट गए।
नोट कमाए हमने।
रिश्ते नाते खतम हुए सब
प्रेम गवांए हमने।। बालकनी बगिया
चौपालें सब सुनी हो गई
पंच हथाई गूंगी हो होगी।
टी वी लगाई हमने।
मोबाइल ही सब कुछ हो गया
नींद गंवाई हमने।। बालकनी बगिया
सच्चे मित्र सब दूर हो गए
कुशलक्षेम मजबूर हो गए
चैन गवांया हमने।
आभासी को गले लगाया
भ्रात गवांए हमने।। बालकनी बगिया
पाठशालाएं बंद हो गई
कान्वेंट हर गली खुल गई।
आंग्ल पढ़ाई हमने।
हिंदी दिवस मनालो कितने
ली मार कुल्हाड़ी हमने।। बालकनी बगिया
डॉ शिवदत्त शर्मा शिव