सच्ची प्रगति है वह
कहते हैं गर्व के साथ हम
बुद्धिमान हैं सभी जीवों में से
अपनी चाल से अन्य जीवों को
अपने अधीन में लेने का लियाक़त
अच्छी तरह जानते हैं हम
मनुष्य के साथ भी आक्रामणकारी
यह तरीका अनादि से है
पशु से बदतर अमानवीय व्यवहार
मनुष्य मनुष्य के साथ समाज में
युग-युगों की कहानी है
सुख – भोग, अधिकार की लालसा में
एक दूसरे को चोट पहुँचाते आगे बढ़ना
माँ के गर्भ से ले आते हैं यह
भेद – विभेदों का संस्कार
सिखाया जाता है बाल-बच्चों को
ऊँच – नीच, अमीर – गरीब,
जाति – धर्म का संकुचित भावजाल
अपना – पराये की भावना में
यथार्थ को जानने में असफल रहा
आज के इस वैज्ञानिक खुले आसमान में
मुक्त नहीं हो पाया वह अहं भाव से
वही पोथी – पुराणों की गाथा में
अपना पुराना प्रतिबिंब देखता रहा
यह सत्य है इस दुनिया में कि
मनुष्य कभी आशा में जीता है तो
कभी निराशा में मरता रहता है
समता-बंधुता, भाईचारे की भावना में
सुख – शांति मिलती है इंसान को
दूसरों को दुःख, पीड़ा देने से
कोई अव्वल दर्जे का नहीं बन पाता,
बड़े-बूढ़ों को मान देने से
उनके अनुभवों को प्राप्त करने से
भविष्य का सुख द्वार खुलता है
सच्चे रास्ते का अहसास होता है
जब पार करने में सक्षम बनता है द्वंद्व से
तब मुक्त होता है सारे उलझन के जालों से
अंतर मन की लयात्मक स्थिति से
वह संपन्न बनता है, जीव बनता है
वही परिणति है, वही सच्ची प्रगति है
मनुष्य का इस अनंत विश्व में ।