लघुकथा

अपना पराया

          “अभी तक खेत से माँ-बाबूजी दोनों नहीं आये हैं। कम से कम माँ को तो आ ही जाना चाहिए था। पता नहीं, इतनी बारिश में वे दोनों कहाँ होंगे।” घर से बार-बार निकल कर सुमन राधे और गौरी की राह ताक रही थी। शाम का समय था। घड़ी की सुइयाँ पाँच बजने का इशारा कर रही थी। चूँकि बारिश का मौसम था; सो घटाटोप अंधेरा छाने लगा था। तरह–तरह के कीट–पतंगे व झींगुर की आवाज सुमन के कानों को छू रही थी। सुमन बहुत डरी हुई थी आज। कई तरह की शंकाएँ सुमन को घेरती जा रही थी- “पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ था; पता नहीं आज अचानक क्या हो गया। वे दोनों खेत से जल्दी आ जाया करते थे।”

         सुमन के दिलो-दिमाग में बड़ा विचलन था। उसका किसी कार्य में मन ही नहीं लग रहा था। देखते ही देखते गरजना शुरू हो गया। बिजली भी चमकने लगी। तभी उसे कुछ दिन पहले गाँव में हुई एक घटना याद आने लगी। वह सहम गयी। खेतों में काम कर रही महिलाओं के ऊपर गाज जो गिर गयी थी। सब ने दम तोड़ दिया था। बार–बार वह दृश्य आँखों के सामने झूल रहा था रहा था। अब तो सुमन की मन ही मन बात हो रही थी कि माँ–बाबू जी दोनों से मैंने कहा था कि जल्दी आना। फिर भी वे मेरी बातें नहीं सुनते। 

          जैसे ही सुमन घर अंदर आयी, बिजली चली गयी। जैसे–तैसे उसने मोमबत्ती जलाया। घर में रोशनी हुई। मन थोड़ा शांत लगा। सुमन घबराने लगी थी- “हे प्रभु ! मेरे माँ–बाबू जी जल्दी घर आ जाए। मुझे बहुत घबराहट हो रही है। कहीं… कुछ…!” थोड़ी देर बाद सुमन को राधे की आवाज सुनाई दी- “सुमन ….! अरी ओ सुमन बिटिया ! जरा मोमबत्ती बाहर लाना तो; बहुत अँधेरा है।” सुमन के जान में जान आई। “जी बाबू जी….” कहते हुए बाहर निकली। सुमन की आँखें माँ को ढूँढ रही थी- “बाबू जी, माँ कहाँ है ? आप लोगों ने इतनी देर क्यों लगा दी आने में ? देखो न, बस बारिश होने ही वाली है; जल्दी आना चाहिए था ना। क्या कर रहे थे आप लोग अभी तक ?”

          सुमन का तो आज सवाल पे सवाल हो रहा था। तभी पीछे से माँ की परछाई नजर आयी। सुमन मुँह बनाते हुए बोली- “आप दोनों को तो मेरी बिल्कुल चिंता ही नहीं है।” तभी अचानक अपनी माँ गौरी को देखते ही सुमन की आँखें फटी की फटी रह गयी। उनकी गोद में एक छोटा सा घायल बछड़ा था। सुमन चुपचाप घर के अंदर चली गयी। सुमन का गुस्सा और भी तेज हो गया था। बोलने लगी कि इतनी रात हो गयी; और आप लोग इस बछड़े को लाये। इसकी क्या जरूरत थी। मैं यहाँ परेशान हूँ। तरह–तरह के मन में ख्याल आ रहे हैं और आप लोग, बस !” 

          राधे और गौरी ने सुमन को शांत करते हुए पूरी घटना की जानकारी दी- “यह बछड़ा कुछ देर पहले ही जन्म लिया था और इसकी माँ उसे छोड़ कर कहीं चली गयी थी। बछड़ा हम्मा…हम्मा… कर रहा था। इसकी मदद करने वाला कोई नहीं दिखा। तेज बारिश भी हो रही थी। बेचारा भीग रहा था। हमें लगा कि बछड़ा बेसहारा है। आधी रात को भला कहाँ जायेगा ? यदि कभी कोई तुम्हें मदद माँगे तो क्या तुम छोड़ कर आ जाओगी सुमन ? मदद नहीं करोगी ? अरे ये तो बेचारा बोल नहीं सकता , तो क्या हम इनकी भाषा भी ना समझें। हमें सब की मदद करनी चाहिए सुमन।” गौरी बोलती ही रही- “सुमन, तुम ही बताओ। अभी थोड़ी देर पहले तुम हम दोनों के बगैर कैसे तड़प रही थी ? जबकि तुम्हें तो पता ही है कि हम आयेंगे ही; फिर भी?” अपने माँ और बाबू जी की बातें सुन सुमन ने अपनी ओर देखते उस मासूम बछड़े को गले से लगा लिया। राधे और गौरी सुमन व बछड़े दोनों को सहला रहे थे

 — प्रिया देवांगन “प्रियू”

प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ Priyadewangan1997@gmail.com