गजल
तेरी तरह दो रोज़ के मेहमान हैं हम भी
उदास जो तुम हो तो परेशान हैं हम भी
मशहूर अगर तुम हो शहर में तो क्या हुआ
न जाने कितनी महफ़िलों की शान हैं हम भी
कैसे उठाएं ऊंगली किसी पर तुम्हीं कहो
ये सच है जब कि थोड़े बेईमान हैं हम भी
खुदा ही जाने कैसे निभेगा ये रिश्ता अब
मासूम अगर तुम हो तो नादान हैं हम भी
ज़ुल्म कितने भी करो पर इतना रहे ध्यान
हमको भी दर्द होता है इंसान हैं हम भी
–– भरत मल्होत्रा