कविता

माँ

जब मैं उनकी ज़िंदगी में आयी
ऐसा लगा होगा पूरी दुनिया जीते
नौ महीने वे कैसे काटे
पूछना होगा उस गुज़रे हुए पलों से

जिस दिन मैं इस दुनिया में आयी
जब मेरा रोना सुनकर उन्हें हँसी आयी
ऐसा लगी होगी कि नयी ज़िंदगी मिली
क्योंकि अब जब वे माँ बन चुकी थी

जब पहली बार मुझे गोद में उठाया
नदी गंगा की तरह ममता भर गयी
जिस दिन मैं उनके घर में पैर रखा
उस दिन ही उनको नया जीवन मिला

हफ़्ते महीने साल बीत गया
माँ के प्यार और डाँट भी बढ़ गया
जब प्यार करें तो टूट के किया
जब डाँट लगाये तो वह भी प्यार से किया

मैं बहुत किसमतवाली हूँ
क्योंकि मुझे ऐसा माँ मिली
जितना उनका प्रणाम करें
उनके लिये वे सब कम हैं

— थारुका निर्माणी, श्री लंका

तारुका निर्माणी, श्री लंका

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