जिंदगी की किताब
जिंदगी की किताब भी
कहती शब्दों में
हमसे कुछ प्यार पाते रहो
हमें भी अपने घरो में फूलो की तरह
बस यूँ ही तुम सजाते रहो।
जिंदगी की किताब में
मित्रता के दिए हुए
कुछ फूल सम्भाल के रखे थे
किताब में
मित्र बिछड़ा तब
जीवन मे मित्रता की याद आई
तब उन्ही यादों के
सूखे हुए फूलो से भी महक
हमें उम्र भर मिलती रही।
— संजय वर्मा “दृष्टि”