गीत
तुम्हें देखकर
हर्षित होता
नर -नारी संसार सकल।
चितवन खग की
चटुल चारुता
चाँद – चाँदनी में भाए।
नित चकोर वह
लगा टकटकी
तरुवर शाखा पर आए।।
इतना नेहिल
नाता पत्नी
अपने पति बिन रहे विकल।
व्रत करवा का
करती पति हित
दीर्घ आयु आकांक्षा में।
रमणी निर्जल
रहकर सूखे
मन में विकसी वांछा में।।
करतीं लेश न
थोड़ी चिंता
कभी नारियाँ तुच्छ नकल।
चाँद गगन के
देर न करना
उदयाचल पर आ जाना।
इतना भी मत
नारी को तू
बिना नीर के तड़पाना।।
बार -बार आ
छत पर अपनी
दिखलाना निज चाँद शकल।
— डॉ.भगवत स्वरूप ‘शुभम्’