छोड़ पराई आस
छोड़ उदासी मेरे भाई ! थोड़ा- सा मुस्कुरा दें,
बीते कल की न सोच , चल हम आज में जीते हैं
कल क्या होगा ! चिंता न कर ,
छोड़ ग़म मेरे भाई ! थोड़ा – सा हंँस लें।
सुन भाई ! ख़ुशी ख़ुशी हर काम कर ,
जग में अपना नाम कर ,
इस जहाँ में ना कोई बड़ा ना कोई छोटा ,
सबको समानता का अधिकार मिला है ,
थोड़ा – सा मेहनत कर लें ,
छोड़ नैराश्य मेरे भाई ! थोड़ा – सा धीरज रख लें।
हिम्मत कर मेरे भाई ! थोड़ा कदम आगे बढ़ा ,
नवपथ देख रहा है चल भाई !
छोड़ पराई आस,
स्वतंत्र है मेरे भाई खुलकर जी लें।
आओ ! हम सब दृढ़ प्रतिज्ञा लें भाई,
किसी का शोषण न करें ,
शिक्षित बनकर , हम गरीबी दूर करें
सुनो भाई ! कुछ करना चाहते हो!
तो, हम सब धर्म से दयावान बन , सभ्यता – संस्कृति का सम्मान करें ,
एक दूसरे से भेदभाव न करके ,
सबके साथ मिलजुल कर दु:ख – सुख बाँटें,
जीवन जीने का यही आनंद है मेरे भाई
थोड़ा – सा त्याग समर्पण करके आत्म संतुष्टि पा लें।
— चेतना प्रकाश चितेरी