लघुकथा

सौतेली माँ

रुबीना के जन्म के साथ ही उसकी माँ के प्राण पखेरू उड़ गए थे। उसके पिता रमेश ने उसे पालपोस कर बड़ा करने का निर्णय किया। शायद उन्हें यह सब कुछ बड़ा आसान लग रहा था। लेकिन थोड़े ही दिनों में उनके हाथ पांव फूल गए। फिर उन्होंने लोगों की राय की आड़ में दूसरी शादी कर रुबीना के लिए नई माँ लाकर उसे उसकी गोद में डाल दिया। रंजीता नाम की नई माँ ने शुरू शुरू में तो बड़ी असहजता महसूस की । लेकिन रुबीना की बाल सुलभ चंचलता ने उसके भीतर के मातृत्व भाव को जागृति कर दिया। फिर तो रंजीता ने रुबीना की परवरिश में अपने आप को भूलती चली गई। रुबीना को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए पति से लड़ी झगड़ी।
       और इस तरह जब रुबीना को अपनी योग्यता और कठिन परिश्रम से नौकरी भी मिल गई तो रंजीता को उसकी शादी की फ़िक्र होने लगी।
    रमेश ने काफी भागदौड़ की लेकिन दहेज का दानव उनको मुंह चिढ़ाता रहा।
    आखिरकार उसने एक कम पढ़े लिखे लड़के से रुबीना का रिश्ता तय कर दिया। लेकिन रुबीना ने उसके इस फैसले का विरोध किया। जब रमेश अपने निर्णय पर अड़ा रहा तो रंजीता ने साफ शब्दों में कह दिया , वह मेरी भी बेटी है। वह किसी कसाई के खूंटे में नहीं बंधी है कि जितना जल्दी हो उसे मुक्त कर दिया जाय। जब उसके लायक लड़का मिलेगा, तभी उसके हाथ पीले करुंगी।
मेरी बेटी अपने पैरों पर खड़ी हो गई। लेकिन कहीं भागी नहीं जा रही है।
    माना कि मैं उसकी सौतेली माँ हूँ, लेकिन तुम तो उसके सगे बाप हो। कम से कम इतना तो सोचो। मुझे अपने भगवान पर भरोसा है। मेरी बेटी का रिश्ता आज नहीं तो कल बिना दहेज होगा और मेरी बिटिया राज करेगी, पर बोझ समझ कर मैं उसे न तो किसी कसाई के खूंटे में बांधने दूंगी और न ही किसी कुंए में ढकेलने दूंगी कि मेरी बेटी तिल तिल कर जीवन गुजारने पर विवश हो जाय।
    रमेश रंजीता की जिद के आगे झुक गया, जबकि रुबीना को अपनी सौतेली माँ पर गर्व हो रहा था।

*सुधीर श्रीवास्तव

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