हास्य व्यंग्य

ई हमार भारतीय संस्कृति को, का होई गवा बा

हम इलाहाबाद के सिविल लाइन में थोड़ा भारतीय संस्कृति का दर्शन करने के इरादे से साइकिल से निकले तभी एक लेडी फ्राक में सड़क पर घूम रही थी। हम जिज्ञासावश स्थानीय लोगों से पूछा- ‘ई का है ‘ कुल लोग कहे कि ई भारतीय संस्कृति है। हमार संस्कृति विकसित हो रही है। पूरा घुटने से आधा उपर तक दिख रहा है। 

एक ने कहा कि जो दिखता है वही बिकता है। हम शरमा गये। हम गांव के ठेठ देहाती। हम का जाने कि सिविल लाइन की भारतीय संस्कृति उपर तक विकसित हो गयी बा। छी::::छी:::; ऐसा ड्रेस पहनती है। शरम के मारे मुंह फेर लिया हमने। फैशन पूरा तन खोल देता है। 

आगे बढ़े तो एक लड़की दिखी जो जिन्स टी शर्ट पहने छोटा-छोटा बाल रखे मिली तो हम लड़का समझ के उसके कंधे पर हाथ रख दिये। वो भड़क गयी। अंकल जी दिखाई नहीं देता है। बीच बाज़ार में लड़कियों को छेड़ते हैं। हम मामला समझ गये। का होई गयी है अपनी भारतीय संस्कृति को। हमारा दिमाग चकरा गया। ई का देश में होई रहा है। 

फटहा -फटहा हम जिन्स पहने बड़े-बड़े घर के लोगों के लड़के लड़कियों को देखा। अपनी संस्कृति लगता है पगला गयी है। अउर दूर गये एक लड़की ने कहा मम्मी यार तुम समझती नहीं हो। यार कह रही है। एक लड़की लड़के के कंधे पर हाथ रखा है। देखकर मुरझा गये हम। हम कहाँ आ गये, दम घुट रहा है। 

आगे बढ़े तो एक बूढ़े को पैंट के उपर चड्डी पहन रखा था।पैंट फटा है इसलिए दिखाई न दे बदन,इसलिए चड्डी पहन लिया था। हमारा माथा ठनका। ई का है। लोग बोले। ई फैशन नहीं है बल्कि गरीब है। ऐसे पहन लिया है गरीबी के कारण। हम मुरझाकर वही ंगिर पड़े। चार लोग पहुंचे। अस्पताल पहुँचा दिये। होश आया। भारतीय संस्कृति समझ में आ गया। 

गरीब व्यक्ति गरीबी में भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए ढक रहा है कि फटा पैंट के कारण दिखे नहीं इसलिए उपर से चड्डी पहन रखा है। अमीर जगह -जगह कपड़े फाड़ कर भारतीय संस्कृति दिखाना चाह रहा है। 

वाह रे अमीरजादी ! अमीर उल्टा सीधा पहने तो फैशन और गरीब उल्टा सीधा पहने तो वह फैशन नहीं बल्कि उसकी गरीबी है। लाचारी है। साईकिल लेकर नीचे सिर किये चले आये कहीं भारतीय फैशन दिख न जाये और मै शरमा जाऊँ। धत्त तेरी की——

— जयचन्द प्रजापति ‘जय’

जयचन्द प्रजापति

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