झूठी शान
बाल कहानी
झूठी शान
बात बहुत पुरानी है। सुन्दर वन के एक पुराने बरगद पेड़ की खोह में कालू नामक एक उल्लू अपने परिवार के साथ रहता था। कालू का एक हंस मित्र था- हंसराज। वह हंसों का राजा था।
कालू अक्सर अपने मित्र हंसराज से मिलने जाता था। दोनों मित्र घंटों बैठकर बातें करते। कालू हंसराज के राजसी ठाठ-बाट देखकर मन में सोचता “काश ! उसके पास भी ये सब होते।”
वह प्रकट रूप में ऐसा कुछ भी बोलता नहीं था। कालू से हंसराज अधिकतर राजकाज की ही बातें किया करता था क्योंकि कालू ने उसे बताया था कि वह उल्लूओं का राजा है तथा सुन्दरवन में उसका एकछत्र राज है। उसकी अनुमति के बगैर सुन्दर वन में कुछ भी नहीं हो सकता।
एक दिन कालू हंसराज से बोला- ‘‘मित्र हंसराज, मैं आपसे मिलने तो कई बार आ चुका हूँ, परंतु आप कभी हमारे यहाँ नहीं आए। कभी पधारिए हमारे राज्य में।’’
कह तो दिया पर मन में सोचा कि यदि सचमुच कभी हंसराज उसके यहाँ आ जाएँ तो फिर वह मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहेगा।
हँसराज बोला- ‘‘मित्र यदि ऐसा ही है तो चलो आज ही चलते हैं।’’
मन मार कर कालू ने हँसराज को साथ ले सुंदर वन की ओर प्रस्थान किया।
अभी वे बरगद के पेड़ के पास पहुँचने ही वाले थे कि बरगद पेड़ के नीचे डेरा डाले सैनिकों को देखकर चौंक पड़े। कालू तो गुस्से से तमतमा गया।
हँसराज से बोला- ‘‘इनकी ये हिम्मत ! मुझसे पूछे बगैर इन्होंने यहाँ आने की जुर्रत कैसे की ? अभी देखता हूँ।’’ यह कह कर वह चिल्लाने लगा।
उसकी आवाज सुन कर उल्लू का बेटा खोह से बाहर निकल आया। वह भी अपने पिता को बुलाने लगा। उल्लूओं की तेज आवाज सुन कर एक सैनिक सेनापति से बोला- ‘‘सेनापति जी ! उल्लू की आवाज सुनना बहुत अशुभ माना जाता है।’’
सेनापति बोला- ‘‘उल्लू, कहाँ है ? पता करो और देखते ही गोली मार दो।’’
आवाज उसी पेड़ से आ रही थी।
सैनिकों ने कालू के बेटे को खोजकर गोली मार दी। झूठी शान और दिखावे के चक्कर में कालू को अपने इकलौते पुत्र से हाथ धोना पड़ा। पोल खुली सो अलग।
-डॉ प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़