सब्र की हदें
ख्वाहिशें न करें ऐसी,
खत्म हो जाए जब रियासत वैसी,
यह पीछे जाने का,
सबसे ख़राब तरीका है,
नहीं हो सकता,
ज़िन्दगी में अपनाने का सलीका है।
हमें ज़िन्दगी में,
पहली कतार में खड़े होकर,
आगे बढ़ने के लिए,
सब्र के हुनर को आबाद रखना चाहिए।
सम्हलकर चलना होगा,
यह आदतन हमें समझना होगा।
गुलामी हमेशा तकलीफ़ देती है,
ख्वाहिशें न पालें ऐसी कभी,
यह हरकत मुश्किल वक्त में,
बड़ी खबर बनकर,
रेशे -रेशे में तकलीफें को समा कर,
झेलने के लिए मजबूर करती है।
हमें ख्वाहिशों पर बन्दिशों से रूबरू होते हुए,
उन्हें सम्भालकर रखना होगा।
सब्र पर दिल के आइने में,
सजाकर रखना होगा।
यही ताकत हमें अक्सर ऊपर ले जाएगा,
मौका मिलता है तो हो सके,
गुलाम को बादशाह तक बना जाएगा।
इसके गुणों से रूबरू होते हुए,
हमें ज़िन्दगी में,
आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।
सम्हलकर रहने के लिए,
इस दुस्साहस पर अमल,
ज़रूर करना चाहिए।
— डॉ० अशोक