गीत/नवगीत

श्रद्धेय अटल जी

यूं ही नही कोई, अटल बन सकता

ग्वालियर की, पुण्य धरा पर
एक अटल सितारा, उदित हुआ
जन-मानस पर, अमिट छाप छोड़ी
बार बार न ऐसा,संयोग बनता
यूं ही नही कोई,अटल बन सकता

जीवन भर वह, रहे कंवारे
हास्य की फोड़ते, रहे फुहारें
संयुक्त राष्ट्र, संघ में
दिया हिन्दी में, भाषण
कोई, हिम्मतवाला ही
ऐसा कर सकता।
यूं ही नही कोई, अटल बन सकता

एक अद्भुत, राजनीतिज्ञ
एक प्रखर, वक्ता
संवेदनशील, ह्रदय के स्वामी
देश के लिए, उनका दिल धड़कता
यूं ही नही कोई,अटल बन सकता

चुनौतियों से, वे न डरते
सिद्धांतों पर, अडिग रहते

विरोधियों में भी, लोकप्रिय थे
गजब की थी, उनकी वाकपटुता
यूं ही नही कोई, अटल बन सकता

भारतीय राजनीति, के वह
चमकते, सितारे थे
थी संघ की , पृष्ठभूमि उनकी
और विचारों में, थी स्पष्टता
यूं ही नही कोई, अटल बन सकता

‌दो सदस्यों की, पार्टी को उच्च शिखर पर, पहुंचा दिया
तीन बार बने, वह प्रधानमंत्री
थी गजब की, नेतृत्व छमता
यूं ही नही कोई, अटल बन सकता

गठबंधन की, सरकारें चलाकर
नये कीर्तिमान, स्थापित कर डाले
धुर विरोधियों को, पक्ष में किया
वाह री वाह, उनकी दूरदर्शिता
यूं ही नही कोई, अटल बन सकता

विश्व भर के , विरोध पर भी
परमाणु परीक्षण, कर ही डाला
भारत को लाए, अग्रिम पंक्ति में
ऐसी थी, उनकी प्रतिबद्धता
यूं ही नही कोई, अटल बन सकता

एक महान लेखक, और विचारक
कलम के धनी, और प्रेरणादायक
राज्य धर्म पर, सदा चले वह
उनकी कविताएं, जन जन पढ़ता।

यूं ही नही कोई, अटल बन सकता

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई