गीत
दिल को दफनाकर मुस्कुराते हुए जी रहा था
सबसे छिप कर अपने गमों को पी रहा था…….
तुम्हारे चंद अल्फाजों ने मन मेरे को छू लिया था
देख तुम्हारे हालातों को ऐतबार तुम पर किया था
जानता नहीं था मैं नादान इतनी जल्दी बदल जाओगी
हाथ छोड़ दोगी तुम भी नजर मुझसे चुराओगी
तन्हा ही ठीक था मैं कम से कम हँस भी रहा था…..
सबसे छिप कर अपने गमों को पी रहा था…….
कहती रहती थी मुझसे चिंता मत करो, मैं हूँ ना
सदा साथ रहूंगी तुम्हारे तुम मत डरो, मैं हूँ ना
बस मैं मूर्ख बना रहा झूठे दिलासे के भरोसे
देखने लगा था सपने तेरे इस तमाशे के भरोसे
एक तेरे सिवा मुझको कुछ भी दिख नहीं रहा था……
सबसे छिप कर अपने गमों को पी रहा था…….
चंद महीनों में ही बदल गई बातें मेरी जहर लगने लगी
कल तक मैं भोला लगता था आज कमियाँ दिखने लगी
“विकास” कहता भी तो क्या मुझे बदलना ही नहीं आया
रोता रहा गिड़गिड़ाता रहा पर तुमने तरस नहीं खाया
फिर भी तेरी खुशी के लिए देखो! वो होंठों को सी रहा था……
सबसे छिप कर अपने गमों को पी रहा था………
— डॉ विकास शर्मा