कविता

आस्था का नाम राम

राम सिर्फ नाम नहीं
आस्था विश्वास और जीवन मंत्र हैं,
राम जी तो सबके ही राम हैं।
पर आज भी कुछ लोग कल की तरह
बस यही तो समझ नहीं पा रहे हैं,
और अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं
वे खुद नहीं जानते वे क्या कर रहे हैं?
जो राम पर कीचड़ उछालने का दुस्साहस कर रहे हैं,
राम के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगाकर
उनका उपहास लगातार कर रहे हैं।
राक्षसी प्रवृत्ति का शिकार हो
अपने को रावण का अवतार समझ रहे हैं
रावण को अपना आराध्य मान रहे हैं।
क्योंकि वे राम को सबका नहीं मान रहे हैं
मैं भी मानता हूँ कि राम सबके नहीं है।
जिनकी राम में आस्था और विश्वास है
राम सिर्फ उन्हीं के अपने राम हैं
सबके राम की आड़ में जो राम जी का
अपमान करने की कसम खा चुके हैं
सबके राम उनके तो कभी राम नहीं हैं
बाकी तो राम जी सबके ही राम हैं
यह हम सब खुली आंखों से देख रहे हैं,
मन के भावों से बखूबी समझ रहे हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921