कविता

सबके राम

न राम कल सबके थे न आज हैं फिर यह कहने का मतलब क्या है कि राम जी तो सबके हैं,ये तो सदियों से होता आ रहा हैकि कल भी राम को मानने वाले थेजो राम को पूरी श्रद्धा से मानते और उन पर अटूट विश्वास रखते थे,तो कुछ उनका उपहास भी कर रहे थे।उनके धैर्य और मर्यादा की परीक्षा लेने का दंभ भर रहे थेसबको उसी के अनुरूप परिणाम तब भी मिल रहे थे।ठीक वैसे ही आज कलयुग में भी कुछ लोग वैसा ही व्यवहार कर रहे हैं,त्रेता युग के उदाहरण को अपवाद समझ रहे हैं,अपने विनाश का नींव मजबूत कर हैंवे राम को अपने से भी हेय और कमजोर मान रहे हैंऔर कुछ भी बोलने की धृष्टता किये जा रहे हैं।क्योंकि उन्हें इतना घमंड है किभले ही राम सबके हों पर उनके नहीं हैंऔर हम सबके प्रभु मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जीआज भी शांत भाव से मुस्कुरा रहे हैंसमय की राह और सही वक्त का इंतजार कर रहे हैं।कोई माने या न माने पर मैं जानता हूंकि राम जी उनका भला ही चाह रहे हैंअपने चरणों में नतमस्तक होने का एक और अवसर अंतिम बार दें रहे हैंइसीलिए तो हम उन्हें सबके राम कह रहे हैं।।

*सुधीर श्रीवास्तव

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