नव वर्ष
नव वर्ष कहो मेरी ख़ातिर क्या क्या सौगातें लाए हो
खुशियों के पल हैं या फिर से अश्कों की बारातें लाए हो
होठों पे खिलेंगी कुछ कलियां या आँखों में शबनम होंगे
गुज़रोगे फ़िराक-ए-ग़म से या कुछ मुलाकातें लाए हो
अंदाज़ नया होगा तेरा या फिर से वही पुरानापन
कुछ ख्वाब सजाओगे आँखों में या जगराते लाए हो
कोरा होगा मन का कागज़ या उभरेंगे कुछ लफ़्ज हसीं
अफ़साना पूरा होगा या खाली दावातें लाए हो
कुछ तो बतलाओ चुप न रहो जख्मों से मेंरे यूं न डरो
जीतेंगी ख़्वाहिशें कुछ अबके या फिर से मातें लाए हो
कुछ और न हो मेरी ख़ातिर इतना तो हो ग़म के मारों का
दामन में दर्द समेट सके क्या वो करामातें लाए हो
— पुष्पा “स्वाती”