कविता

सृजन

कल्पना परिकल्पना और सृजन
नव निर्माण संजीवन,
सृजन यात्रा का मुख्य सूत्रधार
ईश्वर का सृजन है हर प्राणी, हर जीव
जलचर, जलचर, नभचर
मानव होता पशु पक्षी या पेड़ पौधे कीट पतंगे
और तब चलती फिरती है ये दुनिया।
हर सृजन का एक सूत्रधार, एक सृजन होता है
बिना सृजक के नवसृजन कहाँ होता?
यथा नव प्राणी के सृजन में नर नारी के
आपसी संयुग्मन का अपना अपना रोल होता है,
उसके बिना भला नवसृजन कहाँ होता है?
सृजन में सृजक की मुख्य भूमिका है
बिना सृजक के सृजन पाता कहाँ अस्तित्व है।
सृजन और सृजन एक दूसरे के पूरक हैं,
एक दूसरे के बिना दो बहुत अधूरे हैं
सृजन के बिना सब कुछ सूना है
कलमकार, कलाकार, चित्रकार की पहचान भी
उसकी लेखनी,कला और चित्र रुपी सृजन ही तो है।
सृजन के बिना सृजक का महत्व नहीं है
और सृजक के बिना सृजन का अस्तित्व कहाँ हैं?
सृजन के बिना रेगिस्तान जैसा हो जाएगा जीवन।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921