कविता

यमराज का श्राप

आज रात की बात है जो बताने जा रहा हूं
जब मैं सोने की तैयारी कर ही रहा था
कि यमराज महोदय अपने तशरीफ़ का टोकरा लिए
मेरी नींद हराम करने के आ गये,
सच कहूं तो अब यमराज मुझे बोझ से लगने लगे हैं,
कुछ ज्यादा ही सिर पर सवार होने लगे हैं
समय असमय जब तब परेशान करने आ ही जाते हैं।
पर मैं भी तो उसका ही इंतजार करता हूं
चार छः दिन नहीं आता तो परेशान हो जाता हूं।
खैर अब काम की बात सुनिए
यमराज ने हमेशा की तरह मुझसे कहा
प्रभु! प्रणाम स्वीकार कीजिए।
गुस्सा आ रहा हो तो थूक दीजिए
आपकी नाराजगी जायज हो सकती है
पर वो नाराजगी मेरी मुश्किल के आगे
पानी भी नहीं मांग सकती है।
मैंने पूछा ऐसी क्या परेशानी आ गई
जिसके लिए मेरी नींद हराम करने की नौबत आ गई।
यमराज मासूमियत से कहने लगा
प्रभु! मैं भी प्राण प्रतिष्ठा में जाना चाहता हूं,
बहुत इंतजार के बाद निमंत्रण ही नहीं पा रहा हूं।
जबकि कई लोग निमंत्रण पाकर भी
न जाने का ऐलान कर रहे हैं,
बस! मेरे दिमाग देशी जुगाड़ आ गया
जिसे आजमाने के चक्कर में
जो हुआ वो ही बताने आया हूं।
आज सुबह एक माता जी के पास मैं पहुंच गया।
उनसे बड़े विनम्र भाव से निवेदन किया
और उनके निमंत्रण पत्र पर खुद के
जाने की अनुमति के साथ
उनके लिए निरर्थक हो चुका निमंत्रण पत्र मांगने लगा।
निमंत्रण पत्र और मेरे निवेदन को ताक पर रख
वो हत्थे से उखड़ गई, एकदम से आगबबूला हो गई
मुझे खुफिया एजेंसी का एजेंट बताने लगी।
बस!मुझे भी ताव आना ही था, हो आ गया
मैंने भी उन्हें दिल से श्राप दे दिया।
यमराज की बात सुन मुझे गुस्सा आ गया
मैंनें उसे डांटते हुए कहा
नालायक तूने किसी को श्राप क्यों दिया?
तू श्राप देने वाला होता कौन है?
खुद को बड़ा धर्मात्मा समझता है ?
क्षमा प्रभु! ऐसा कुछ भी नहीं है
अब किसी ने इतने प्यार से बुलाया है
वो भी तब जब उनके बेटे का विवाह भी नहीं है
सबके राम जी की प्राण प्रतिष्ठा का अनुष्ठान है।
फिर भी उसने निमंत्रण ठुकराने का दुस्साहस किया
उसने निमंत्रण ठुकरा कर राम जी का अपमान किया।
बस मैंने भी उसका राम मंदिर में
हमेशा के लिए प्रवेश वर्जित होने का श्राप दे दिया।
आपको तो पता है मैं कभी कभार ही श्राप देता हूं
और मेरा श्राप कभी निष्फल भी नहीं होता है,
उसे तो मेरा अहसान मानना चाहिए
कि सिर्फ उसे ही श्राप देकर छोड़ दिया
उसके परिवार को एकदम बेदाग रहने दिया ।
मैंने अपना सिर पीट लिया और उससे कहा
यार तू मेरी बड़ी बदनामी करवायेगा
मेरी साफ सुथरी छवि पर कालिख लगवाएगा।
तब यमराज ने मुझे आश्वस्त किया
प्रभु ऐसा कभी भी नहीं होगा,
मेरे रहते किसी की इतनी औकात भी तो नहीं है,
रही उसको दिए श्राप की बात तो
आप कहोगे तो वो मैं वापस ले लूंगा,
पर उसको अपना निमंत्रण खुद आकर मुझे देना होगा।
मेरी भी जिद है
कि प्राण प्रतिष्ठा में उसके ही निमंत्रण पत्र पर जाऊंगा,
प्रभु के दरबार में दर्शन लाभ तो मैं उठाऊंगा
और हाजिरी उसके नाम की ही लगवाऊंगा,
यदि वो अपना निमंत्रण पत्र देने खुद मेरे पास आयेगी।
इतने भर से हम दोनों का काम बन जाएगा
इस तरह उसे जाना भी नहीं पड़ेगा
और उसका खानदानी दंभ भी बना रह जाएगा,
निमंत्रण पत्र का मान भी रह जाएगा
इस तरह प्राण प्रतिष्ठा में जाने का
मेरा सपना भी पूरा हो जाएगा,
और साथ ही उसको दिया मेरा श्राप भी
स्वत: ही दम तोड़ जाएगा।
और यमलोक में मेरा सम्मान बढ़ जाएगा,
आखिर मुझे भी जब प्रभु श्रीराम जी के
दर्शनों का लाभ जो मिल जायेगा,
इस बात का समाचार जब टीबी, अखबार में
खूब बढ़ चढ़कर आ जाएगा।
आपकी कृपा से राम जी और मेरा रिश्ता
और भी मजबूत हो जाएगा,
तब यमलोक में भी क्या मेरा भाव नहीं बढ़ जाएगा,
अब आप ही उसे समझाओ,
फ्री में उसे मिला अपना निमंत्रण पत्र मुझे देने में
आखिर उसका कौन सा नुकसान हो जायेगा?

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921