गजल
दिल का साझेदार बना कर ।
भूल गए वो प्यार जता कर।।
पत्थर की नगरी में हम तो।
रोये उनको यार बनाकर।।
हमने फूल दिए थे जिनको।
चले गए वो खार बिछाकर।।
ऐसे निकले अपने दुश्मन ।
लूटा हमको यार बनाकर।।
कर ना पाए वो शुकराना।
जिनका ढोया भार उठाकर।।
सब कुछ पहले राख किया अब ।
क्या करना अंगार बुझा कर।।
सूखे फूलों से थे हम तो ।
क्यों कोई रखे हार बनाकर।।
पल में बिछड़े जो कहते थे ।
छोड़ेंगे हम पार लगाकर।।
— अशोक दर्द