पुस्तक समीक्षा

भावपूर्ण और ह्रदय स्पर्शी रचनाओं का गुलदस्ता*

*तुमको अपनी जीत लिखूँ*

(गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, छंद संग्रह)

मेरे परम मित्र भाई संजय कुमार गिरि जी युवा कवि, शायर व एक खुद्दार और यशस्वी रचनाकार- चित्रकार हैं।

हाल ही में आपका काव्य संग्रह “तुमको अपनी जीत लिखूँ ” मिला।इस संग्रह में –

150- मुक्तक , 12-गीत , 44- ग़ज़ल ,150- दोहे ,

12 -घनाक्षरी एवं 6 -कुंडलियाँ .संग्रहित हैं।

पूजनीय माता- पिता को समर्पित ये काव्य संग्रह माँ शारदे की स्तुति एवं गुरु वंदना से प्रारंभ किया गया है।

अपने गुरु के प्रति आपकी अगाध श्रद्धा देखते ही बनती है।यथा –

नमन करें हम आपको, हे गुरुवर जगदीश।

सिर पर अपना हाथ रख, दीजे शुभ आशीष।।

इस संग्रह को विशेष रूप से आदरणीय भीम सेन जी, डॉ. रुक्मिणी जी, रमेश शर्मा जी, लव कुमार प्रणय जी एवं इक़बाल अशहर साहब ने अपना आशीर्वाद प्रदान किया है।

इस संग्रह की भूमिका, प्रसिद्ध साहित्यकार- लेखक ,

कवि ,आदरणीय भाई रामकिशोर उपाध्याय जी द्वारा लिखी गई है।उन्हीं के शब्दों में- ” इस संग्रह का आना निश्चित ही कवि और हिंदी साहित्य के लिए एक सुखद घटना है “

गीत जिसके आधार पर संग्रह का नामकरण हुआ है,जहाँ कोमल भावों की अभिव्यंजना का निरूपण करता है वहीं पाठक के हृदय में सीधा उतर जाता है।उसी गीत की एक बानगी प्रस्तुत है-

दिल कहता है तुम पर सजनी ,मनभावन सा गीत लिखूँ

तुम रहती हो दिल में मेरे ,तुमको मन का मीत लिखूँ

जब देखूँ मैं सुन्दर मुखड़ा,ये दिल धक धक करता है

पास तुम्हारे आने को ये ,हर पल आहें भरता है

जीवन के इन संघर्षों में ,तुमको अपनी जीत लिखूँ

तुम रहती हो दिल में मेरे ,तुमको मन का मीत लिखूँ

कवि के गीतों में माधुर्य भाव और गेयता देखते ही बनती है।एक दृश्य –

जब भी मेरे गीत पढ़ोगी,आँखें नम हो जाएंगी

रोक न पाओगी तुम खुद को,यादें जब तड़पाएंगी

संजय जी की रचनाओं में एक सहृदय प्रेमी ,राष्ट्र भक्त और विवेकशील कवि की छवि स्पष्ट दिखाई देती है।

संदर्भ हेतु कुछ मुक्तक देखिए-

सुहानी चाँद- तारों की वही फिर रात भायी है

बताने वह हमें अपने मिलन की बात आयी है

सुनाती है कहानी आज अपने प्यार की हमको

भरे आँचल में गोरी प्रेम की सौगात लायी है-

*

जिस्म तिरंगे में था लिपटा ,अस्थि कलश में फूल गये

मातृभूमि की रक्षा के हित, बीबी – बच्चे भूल गये

शान बचाने को भारत की, माटी से श्रृंगार किया

ऐसे थे वे वीर सिपाही , फाँसी पर जो झूल गये

आज के समय में भक्ति भाव से ओतप्रोत मुक्तक प्रशंसनीय हैं-

नमन श्री राम को करके हरेक दिल मुस्कुराया है

जलाकर दीप हर घर को दिवाली सा सजाया है

हुआ जीवन सफल श्रीराम के चरणों में आकर अब

खुशी का दिन अयोध्या में हमारी आज आया है

*

सभी भक्तों को जिनका ये सलौना रूप भाया है

सकल ये विश्व जिनके तेज से ही जगमगाया है

चला आया उन्हीं के द्वार पर मैं भी दिवाना सा

दरस पाकर प्रभू का आज दिल को चैन आया है

अब संजय जी की ग़ज़लों पर बात करते हैं । संग्रह की सभी ग़ज़लें बहुत सुन्दर बन पड़ी हैं।

आपकी ग़ज़लों के कुछ शेर जो मुझे बेहद अच्छे लगे प्रस्तुत हैं-

आते जाते रहें आप दिल में मेरे

आप के दिल में,मैं आता जाता रहूँ

*

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल लग रही हो

तुम्हें एक मिसरा- ए सानी लिखेंगे

*

हमने मिटा लिए सभी अपनों से फ़ासले

हम दुश्मनी किसी से भी रखते कभी नहीं

*

मैं उसके दिल में रहना चाहता हूँ

है जिसका राब्ता इक अजनबी से

*

भलाई का सिला उसने दिया ये

सभी इल्ज़ाम मुझ पे धर गया है

इस काव्य यात्रा में अब संग्रह में संग्रहित छंदों की ओर चला जाए।

आपके दोहों पर ये बात पूरी तरह सटीक बैठती है – “देखन में छोटे लगै घाव करें गम्भीर ” संग्रह से कुछ दोहे –

सम्बन्धी अब हैं कहाँ, मन में सबके खोट।

आव भगत के नाम से, करते दिल पर चोट।।

*

मेरे घर में है मिला, मुझको सुन्दर नाम।

माँ कहती है प्यार से, आ मेरे घनश्याम।।

*

चल गोरी चल साथ में, अब तू मेरे गाँव।

नाव बने इस हाथ पर,रख दे अपने पाँव।।

*

कभी किसी का तुम यहाँ, मत करना अपमान।

पता नहीं किस रूप में, मिल जाएं भगवान ।।

अपनी बात को विराम देने से पूर्व संग्रह के अंतिम भाग से एक घनाक्षरी एवं एक कुंडली साहित्य प्रेमियों के सन्दर्भ हेतु-

दिल को मिलाने हेतु ,काम बन जाने हेतु

हाथ को मिलाके आप, हाय बोल दीजिए

किसी अपने को जब, घर पे बुलाना हो तो

उसको पिलाने हेतु , चाय बोल दीजिए

मन से न मन मिले ,रहे शिकवे ओ गिले

दिल से विदा करें औ ,बाय बोल दीजिए

प्यार अपनों का मिले,फूल खुशियों का खिले

साथ मुझको आपका , भाय बोल दीजिए

*

अभिनन्दन मम ओर से ,आप करें स्वीकार

हाथ जोड़ कर आपको ,नमन करें शत बार

नमन करें शत बार ,ह्रदय में आज बिठाकर

क्षमा करें हर भूल,विनय है शीश झुकाकर

कह संजय कविराय, करें हम हर पल वन्दन

घर -द्वारे पर मित्र , आपका है अभिनन्दन

कुल मिलाकर भाई संजय कुमार गिरि जी द्वारा सहज , सरल और आम बोलचाल के शब्दों में लिखी सभी रचनाएं अपनी भाषा और शिल्प के साथ पूरा न्याय करती दिखाई पढ़ती हैं। काव्य संग्रह “तुमको अपनी जीत लिखूँ” साहित्यिक समाज और काव्य रसिकों में अपनी एक अलग पहचान बनाएगा ,ऐसा मेरा विश्वास है। आप पर माँ शारदे की कृपा सदैव बनी रहे इसी कामना के साथ अशेष शुभकामनाएं।

लव कुमार ‘प्रणय’

‘रतन दीप’

के- 17,ज्ञान सरोवर कॉलोनी,

रामघाट रोड, अलीगढ़ (उ.प्र.) 202001

मोबाइल – 9690042900

[पुस्तक : *तुमको अपनी जीत लिखूँ*

कीमत : ₹250/-

लेखक : संजय कुमार गिरि

प्रकाशक : शब्दांकुर प्रकाशन ,नई दिल्ली

संजय कुमार गिरि

कवि शायर -संजय कुमार गिरि पिता ,श्री धनुषधारी गिरि माता -श्री मति सुशिला देवी गुरु --स्व:डॉ राम प्रसाद मिश्र शिक्षा -स्नातक हिंदी (दिल्ली) ,कॉलेज ..पी.जी .डी.ऐ. वी .(संध्या)कॉलेज ,दिल्ली यूनिवर्सिटी सम्प्रति -सिक्यूरिटी ऑफिसर्स Group 4 Security घर का पता -जे -288/3, करतार नगर दिल्ली -110053(गीता ब्यूटी पालर ),दूरभाष -9871021856 प्रकाशन -"काव्यशाळा" कविता संग्रह में 24 कवियों की रचनाओं का संकलन "काव्यमाला" शीघ्र प्रकाशनार्थ ! तकनीकी शिक्षा-पेंटर (स्केचिंग,फाइनआर्ट ) सम्मान-१.मद्ये-निषेध निदेशालय दिल्ली सरकार द्वारा वर्ष १९९६-९७ में आयोजित गीत ,कविता प्रतियोगिता में प्रोत्साहन पुरस्कार दिल्ली के स्वस्थ मंत्री श्री हर्ष वर्धन द्वारा सम्मानित। 2.साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित -युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच ! 3.उपन्यास खट्टे मीठे रिश्ते--- साहित्य की अनुपम कृति एवं विश्व रिकॉर्ड की हकदार औपन्यासिक कृति 'खट्टे मीठे रिश्ते' में लेखकीय सहयोग हेतु विश्व हिंदी संस्थान कनाडा.के संस्थापक ,एवं प्रयास ई पत्रिका के सम्पादक ,प्रो.सरन घई जी द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया गया 4. "साहित्य प्रहरी सम्मान "शुभ प्रभात मंच द्वारा समानित ! 5."काव्यशिरो मणि "मालिक फेंस कल्ब द्वारा समानित ! उपलब्धि - पत्रिकाओ में निरंतर प्रकाशित रचनाएँ :ट्रू मिडिया (दिल्ली),समर सलिल( लखनऊ ),राष्ट्रीय प्रस्तावना (लखनऊ),तीसरी जंग (अलीगढ .) ,दिशेरा टाइम्स (रायबरेली )दिन प्रतिदिन (अम्बाला )आज समाज (गुडगाँव )अवाम ऐ हिन्द (दिल्ली )शिखर विजय (जयपुर),अक्षर वार्ता (उज्जैन )आप अभी तक (गाज़ियाबाद) ! मुख्य वेब साइट- http://giriarts.blogspot.com