ग़ज़ल
नींद में भी गुलाब देखन से
आँख माने न ख़्वाब देखन से
वो तमाशा जवाब में पाया
मैं हुआ लाजवाब देखन से
इक तरह का सवाब मिलता है
हर तरह के शबाब देखन से
आप मदहोश हो रहे पीकर
मैं नशे में शराब देखन से
लग रहा है कि हूर ही होगी
झिलमिलाती नक़ाब देखन से
दृष्टि पथरा गयी हमारी तो
हाल गुल का ख़राब देखन से
क्या न देखा बवाल जीवन में
रह गया इंक़लाब देखन से
— केशव शरण