चाहत
बसंती बयार मादक है मौसम
अल्हड़ नदी सी मतवाली है
ऋतुराज बसंत का हुआ आगमन
कलियों की श्रृंगार में पागल माली है
बह कर आई हवा में खुशबू
कौन गुलशन में इत्र बिखेर दिया
हवा में छाई भंग सी मस्ती
कौन मदिरा है घोल दिया
अमुवा के डाली पे कोयलिया काली
विरह की गीत गुनगुनाती है
अपनी प्रेम की दे रही दुहाई
परेेदेशी पिया को बुलाती.
अब तो आजा पिया परदेशी
फागुन कल आनेवाली है
नहीं चाहिये धन व दौलत
तेरे संग जीवन मुस्कुराने वाली है
तेरी पैरों की आहट से मेरी
आशा की दीप दिल में जल जाती है
मेरे दिल की पोर पोर में तेरी
प्यार की गीत गुनगुना आनंद दे जाती है
— उदय किशोर साह